ग़ज़लः१
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यूँ हवा आके पत्ते उड़ा ले गई
शाख़े -गुल को भी आख़िर दग़ा दे गई
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किस क़दर मुन्तज़िर बज़्म में थे सभी
हर नज़र दस्तकों की सदा दे गई
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साफ़ इन्कार करना तो अच्छा न था
कुछ उमीदों का वो सिलसिला दे गई
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जो समझती रही वो नहीं तू रहा
तेरी पहचान तेरी जफ़ा दे गई
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मौज घबराके टकराई साहिल से यूँ
आनेवाला है तूफाँ, पता दे गई.
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शोखियों का इरादा धरा रह गया
मेरी मुस्कान मुझको दग़ा दे गई
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हिज्र की आग में दिल सुलगता रहा
याद रह -रह के देवी हवा दे गई
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ग़ज़लः २
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पंछी थे प्यार के यहाँ जाने कहाँ उड़े
वीरान करके बस्तियाँ क्यों दूर जा बसे
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वो क्या हैं, लोग खुद को कभी देखते नहीं
उंगली उठाके और पे हँसते सदा रहे
.
सपनों में आशियाँ तो बने प्यार के बहुत
लेकिन हक़ीक़तों से वो टकराके कब बचे
.
कुछ दिक्क़तें थीं बीच में दीवार की तरह
वो सिलसिले मुसीबतों के कम न हो सके
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हर ज़िंदगी के वार से ख़ुद को बचा लिया
लेकिन कज़ा के सामने मजबूर हो गये
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जो दे पनाह दिल को मेरे वह मिला नहीं
बस दर-ब -दर की ठोकरों में हम पले-बढ़े
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देवी नागरानी
मुम्बई
1 टिप्पणी:
bhavon ko samete bahut kuchh kahti v byan karti dono gazal achchhi lagi .badhai .
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