11 अप्रैल 2009

डॉ0 वीरेन्द्र सिंह यादव की पुस्तक - पर्यावरण : वर्तमान और भविष्य (4)


यहाँ डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव की ‘पर्यावरण’ पर आधारित पुस्तक ‘‘पर्यावरण: वर्तमान और भविष्य’’ का प्रकाशन श्रृखलाबद्ध रूप से किया जा रहा है। यह पुस्तक निश्चय ही पर्यावरण संरक्षण के प्रति कार्य कर रहे लोगों को, विद्यार्थियों को लाभान्वित करेगी।

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लेखक - डॉ० वीरेन्द्र सिंह यादव का परिचय यहाँ देखें
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अध्याय-4 = वायु प्रदूषण: अर्थ, अवधारणा तथा इसके निवारण में नियन्त्रण के उपाय
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वायु में ऐसे तत्वों का विद्यमान होना, जो मनुष्य एवं पर्यावरण दोनों के लिए घातक तथा हानिकारक होते हैं वायु प्रदूषण कहलाते हैं, वायु वस्तुतः कई गैसे आक्सीजन (21 प्रतिशत से कम), नाइट्रोजन (78 प्रतिशत), कार्बन डाइ आक्साइड (.003 प्रतिशत) इत्यादि गैसों का मिश्रण होती है इनके अनुपात में असंतुलन की स्थिति ही वायु प्रदूषण को जन्म देती है। पार्किन्स हेनरी के शब्दों में कहे तो - ‘‘वायुमण्डल में गैंसे निश्चित मात्रा तथा अनुपात में होती हैं। जब वायु अवयवों में अवांछित तत्व प्रवेश कर जाते हैं तो उनका मौलिक संगठन बिगड़ जाता है। वायु के दूषित होने की यह प्रक्रिया वायु प्रदूषण कहलाती है।’’ अर्थात् वाह्य वातावरण में एक या एक से अधिक प्रदूषकों की विद्यमानता जैसे धूल, धूम्र, कुहरा, दुर्गन्ध, वाष्प इत्यादि किसी निश्चित समय तक वर्तमान रहकर इतना हानिकारक हो जाएं जिससे मानव पशु व पेड़ पौधों के शान्तिमय और सुखमय जीवन को अशान्त व रोग ग्रस्त बना दें। वायु प्रदूषण कहा जाता है।

वायु प्रदूषण के स्रोत
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मानवीय स्रोत
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जनसंख्या विस्फोट
शहरीकरण
वनोन्मूलन
आग जलाने से
कीटनाशकों के छिड़काव द्वारा
औद्योगिक इकाईयों से
वाहनों के ईधन से
विकिरण द्वारा
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प्राकृतिक स्रोत
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वनों से लगी आग से
तूफान द्वारा
ज्वालामुखी के विस्फोट द्वारा


मानव सभ्यता के प्रारम्भ में आग जलाने व वनों को जलाने के उदाहरण मिलते हैं लेकिन उन दिनों वायुमण्डल की समस्या कम थी एवं मानव जीवन पर कम खतरा था। लेकिन वर्तमान में भौतिकता तथा औद्योगिक क्रांति के बाद फसलों में कीट नाशकों का अंधाधुंध प्रयोग, औद्योगिक इकाइयों के बढ़ने, वाहनों की संख्या में अचानक वृद्धि तथा विकिरण जिसमें विषैली गैसें, रेडियोएक्टिव पदार्थों की मात्रा बढ़ जाने से वायु प्रदूषण बहुत तेजी से मनुष्य को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। अकेले दिल्ली की बात करें तो वहाँ 14 लाख मोटर वाहनों से 857 टन धुंआ प्रतिदिन निकलता है जिसमें हानिकारक कार्बन मोनो आक्साइड गैस वातावरण में धुलकर आँखों में जलन तथा अन्य शारीरिक क्षति पहुँचा रही है। अब प्रश्न उठता है कि ऐसी कौन सी और गैसें हैं जो मानव को शारीरिक एवं भौतिक रूप से हानियां पहुँचा रही हैं प्रस्तुत सारणी से तस्वीर स्पष्ट हो जायेगी।

वायु प्रदूषण के प्रभाव
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वायु प्रदूषण से आज मानव, पशु, वनस्पतियाँ तथा सामाजिक आर्थिक क्रियायें भी प्रवाहित हो रही हैं। वायु प्रदूषण मनुष्य के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव डाल रहा है जैसा कि सारणी से स्पष्ट है कि वायुमण्डल में विषैली गैसों के फैलाव के कारण ये रोग मनुष्य में हो जाते हैं। व्यावसायिक दृष्टि से चलने वाली फैक्ट्रियों एवं उद्योगों में उन्हें सिलिकोसिस, ऐस्बेस्टासिस, बाईसिनोसिस, न्योमोको नियोसिस जैसे भयानक रोग हो जाते हैं। मनुष्य की तरह पशु भी इस प्रदूषण की चपेट में तेजी से आ रहे हैं। गाय, बैल और भेड़ फ्लोरीन के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। फ्लोरीन की मात्रा घास और वनस्पतियों में एकत्र हो जाने के कारण जब पशु इन्हें चरते हैं तो उनके दांत खराब हो जाते हैं और कुछ न खाने की स्थिति में उनकी मृत्यु हो जाती है। पौधों की पत्तियों पर छोटे-छोटे रंध्र होते हैं। जिससे इनके भोजन तैयार करते समय सूर्य की रोशनी से हवा के द्वारा तैयार कर लेते हैं और उनका विकास हो जाता है। वायु में उपस्थिति जहरीले तत्व पौधों की पत्तियों में मौजूद इन रन्ध्रों को बन्द कर देते हैं और इनके विकास की प्रक्रिया में अवरोध आ जाता है। वायु मे सल्फर आक्साइड की मात्रा बढ़ाने से पौधों एवं वनस्पतियों में फूलों की कलियां कड़ी हो जाती हैं। जिससे फूलों व फलों के उत्पादन में बुरा असर पड़ता है। धुंए के फैलने से मूली का 50 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तक विकास अवरूद्ध हो जाता है। वहीं प्रदूषित जल वृष्टि से छोटे पौधे एवं घासें उगना बन्द हो जाती हैं। चूने की लीचिंग के कारण मिट्टी अम्लीय हो जाने के कारण उनका विकास नहीं होता है। भारत सहित विश्व में ऐसी अनेक ऐतिहासिक भवन एवं इमारतें हैं जो वायु प्रदूषण का शिकार हो रही हैं। भारत में दिल्ली का लाल किला, कुतुबमीनार, रेलवे के धुंए तथा वायु प्रदूषण से अपनी लालिमा तथा प्रकृति प्रदत्त रंग को खोते जा रहे हैं। वहीं मथुरा के खनिज तेल शोधन कारखानों के कारण ताजमहल व मथुरा के मंदिरों में बहुत ही बुरा असर पड़ रहा है। विश्व में लन्दन का सेन्टपाल केथीट्रल स्ट्राक होम में रिद्वार टोभ चर्च, रोम में ट्रोजन का स्तम्भ, पश्चिमी जर्मनी में कोलोन कैथीड्रल इत्यादि स्ट्रोन कैन्सर का शिकार होते जा रहे हैं। वायु प्रदूषण द्वारा मौसम और जलवायु दोनों प्रभावित हो रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्र इससे अधिक प्रभावित हो रहा है। वायु प्रदूषण के कारण पृथ्वी के तापमान में निरंतर वृद्धि हो रही हैं। तापमान की इस वृद्धि के कारण जहाँ एक ओर बर्फ पिघलने से बर्फीले इलाकों की जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वहीं दूसरी ओर समुद्र में पानी का स्तर उठने के कारण मौसम तथा वर्षा की संरचना व मात्रा में महत्वपूर्ण एवं आश्चर्य चकित कर देने वाले परिवर्तन घटित हो रहे हैं। शहरी परिवेश का जलवायु पर प्रभाव एयर कंडीशनर, फ्रीज, अग्निशमक यंत्रों, डियोडरेंट परफ्यूम आदि से उत्सर्जित होने वाले क्लोरो फ्लोरो कार्बन (CFC) के कारण अधिक हो रहा है। इसके फलस्वरूप सूर्य की पराबैंगनी किरणें (Ultra Violot rays) पृथ्वी पर अधिक से अधिक मात्रा में पहुँचती हैं जिससे तापमान में वृद्धि व मौसमी असंतुलन बढ़ जाता है।
इन सबके अलावा वायु प्रदूषण से अनेक सामाजिक आर्थिक हानियां घटित होती हैं। संगमरमर, मकानों की बाहर पुताई, कारों के रंग का चला जाना, बीमारी, मृत्यु, चिकित्सा मूल्य, कार्य से अनुपस्थिति एवं उत्पादकता में कमी मुख्य सामाजिक आर्थिक दुष्प्रभाव हैं ही इसके साथ ही वायु प्रदूषण से न्यून दृश्यता से रेलों तथा सड़कों की दुर्घटनाएं, भवनों को क्षति, फसलों, वनस्पतियों तथा पशुओं की हानि भी सामाजिक आर्थिक हानि के दायरे में आते हैं।

वायु प्रदूषण का निवारण तथा नियंत्रण
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वैसे देखा जाए तो वायु प्रदूषण को व्यावहारिक रूप से पूर्णतः नियंत्रित करना अति कठिन कार्य है। आज हम इतने सुविधा भोगी हो गये हैं कि आधुनिक जीवन की क्रियाकलापों को हम छोड़ ही नहीं पा रहे हैं - वाहनों को बिना चलाये हम रह ही नहीं सकते इसके साथ ही विश्व बिरादरी से बराबरी के लिए उद्योगों का संचालन हम रोक नहीं सकते। रही बात सौन्दर्य प्रसाधन की तो इसके साथ समझौता होने का मतलब गृह में असामंजस्य की भावना उत्पन्न हो जायेगी।
वायु प्रदूषण की रोकथाम उसके स्रोतों मौसमी दशाओं पर निर्भर करती है अर्थात् इसे दो प्रकार से नियंत्रण में लाया जा सकता है जिन स्रोतों (कारणों) से यह होता है उन पर रोक (प्रतिबंध) लगाकर। इसके साथ ही द्वितीय तरीके से उन कारकों पर जो इसे फैलाते हैं उनका उपचार किया जाये और जो प्रदूषक इसे फैलाते हैं उस पर नियंत्रण किया जाये। विश्व के अनेक देशों ने इन दोनों ही उपायों को अपनाकर वायु प्रदूषण को नियंत्रण किया है। भारत में सरकारी एवं गैर-सरकारी दोनों स्तरों पर प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उपाय किये जा रहे हैं। भारत में वायु प्रदूषण अधिनियम 1981 इसका जीवंत उदाहरण है बात यहाँ इस बात की नहीं है कि सरकारें क्या कह रही हैं वरन् मूल प्रश्न यह है कि हमने (आम जनता) प्रदूषण की रोकथाम के लिए क्या उपाय एवं सहूलियतें बरती हैं। आज ‘आवश्यकता इस बात की है कि वायु प्रदूषण सम्बन्धी समस्याओं, उनके कारणों और प्रभावों के प्रति जन सामान्य तथा सरकारों को जागरूक किया जाए। इसके साथ ही वर्तमान में नगरीय एवं औद्योगिक क्षेत्रों की निगरानी अति आवश्यक है।

वायु प्रदूषण रोकने में विश्व स्वास्थ्य संगठन के उपाय
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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायु प्रदूषण रोकथाम हेतु तीन उपाय सुझाये ।
1. जहरीले पदार्थों को वायु में मिलने से रोकना।
2. पुरानी तकनीक एवं ईंधनों के स्थान पर नई तकनीक एवं ईधनों का प्रयोग।
3. पानी में घोलन क्रिया द्वारा जहरीले पदार्थों के संकेन्द्रण में कमी करना।
इसके साथ ही भारत सरकार के नेशनल कमेटी फार एनवायरमेंट फ्लानिंग एण्ड कोआर्डिनेशन के माध्यम से विभिन्न शहरों में प्रदूषण निवारक मण्डलों की स्थापना की है जो पर्यावरणीय प्रदूषण के लिए समय-समय पर विभिन्न क्रियाकलापों को सम्पादित करता रहता है। सामान्य तौर पर वायु प्रदूषण को कम करने एवं संरक्षण हेतु सामान्य सुझाव इस प्रकार हैं -
1. वायु प्रदूषण नियंत्रण हेतु कटिबन्ध बनाये जायें।
2. वायु प्रदूषण स्रोतों पर नियंत्रण लगाया जाये।
3. अधिक से अधिक पेड़ों को लगाया जाये तथा पेड़ काटने पर रोक लगाई जाये।
4. उपकरणों के संशोधन, तकनीकी के परिवर्तन से जिसमें धुंआ रहित चूल्हे, सोलर कुकर व बायो गैस, भट्टी के उपयोग को बढ़ावा दिया जाये।
5. एक निश्चित सीमा से अधिक चले वाहनों पर प्रतिबंध लगाया जाये। साथ में यूरो द्वितीय का प्रयोग किया जाए इसके साथ ही पेट्रोल, डीजल में होने वाली मिलावट पर रोक लगाई जाये।
6. वाहनों में सीसा रहित पेट्रोल का प्रयोग किया जाये और सी. एन. जी. गैस एल.पी.जी. का उत्पादन बढ़ाकर इसे छोटे नगरों एवं शहरों की ओर लाया जाये।
7. उर्वरक कीटनाशक के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाये।
8. उद्योगों में गैस छोड़ने से पहले उसका शोधन एवं फिल्टर युक्त ऊँची चिमनी का प्रयोग किया जाये तथा उसे उत्सर्जित करने की इजाजत दी जाए।
9. क्लोरो फ्लोरो कार्बन के बढ़ते उत्पादन व उपयोग में कटौती की जाये।
10. वायु, सौर ऊर्जा, समुद्री धारा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग किया जाए।
11. पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से वायु प्रदूषण से होने वाले नुकसान के बारे में जनता को जागरूक करने के लिए प्रयत्न किए जाएं।
12. ऐसे कठोर कानून एवं नियमों का सरकार प्रावधान करे जिसे तोड़ने वाले को कठोर दंड का प्रावधान हो।
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सम्पर्कः
वरिष्ठ प्रवक्ता: हिन्दी विभाग
दयानन्द वैदिक स्नातकोत्तर महाविद्यालयउरई-जालौन (उ0प्र0)-285001

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