15 अप्रैल 2009

कृष्ण कुमार यादव की कहानी - बेटे की तमन्ना

बेटे की तमन्ना
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रात के करीब एक बजे.... चारों तरफ सन्नाटा .... कभी-कभी कुछ कुत्तों की कूं-कूं सुनाई देती या झोपड़ियों के बाहर सो रहे लोगों के खर्राटों की आवाज। गाँव की दलित बस्ती के अंतिम छोर पर स्थित झोपड़े में से लालटेन का मद्विम प्रकाश छनकर बाहर आने की कोशिश कर रहा था। झोपड़े के अन्दर जमीन के एक कोने में लेटी स्त्री अचानक प्रसव-पीड़ा से कराह उठी। उसके पूरे बदन में ऐंठन होने लगी। उसकी पीड़ा और कराह सुनकर उसकी सास माँ जो कि उसके पहले से ही जने गये चार बेटियों को लेकर सो रही थी उठकर उसके करीब आ गयी। इस बार अपनी बहू की पुत्र रत्न प्राप्ति के प्रति वह आश्वस्त थी। उसने तमाम देवी-देवताओं के दर्शन करने और मन्नत मानने से लेकर अपनी बहू को गाँव के पुरोहित और ओझा से भी बेटा होने का आशीर्वाद दिलाया था। इसके बदले में उसने पुरोहित और ओझा को पचीस-पचीस रूपये भी दिये थे। यद्यपि वह लगातार चार वर्ष से बहू की पुत्र-प्राप्ति हेतु सब जतन कर रही थी, पर अभी तक भगवान ने उसकी नहीं सुनी थी।

चारों बेटियाँ घर में किसी नये सम्भावित सदस्य के आगमन से बेखबर सो रही थीं। घर का मर्द दिन भर कड़ी मेहनत के बाद एक गिलास कच्ची दारू पीकर बेसुध खर्राटे भरी नींद ले रहा था। उसका इस बात से कोई मतलब नहीं था कि उसका एक अंश आज कहीं बाहर आने को उत्सुक हो रहा है। चार बेटियों की प्राप्ति के बाद उसने भी पुत्र प्राप्ति की आशा छोड़कर सब कुछ भगवान के भरोसे छोड़ दिया था। उसे तो शायद यह भी नहीं पता कि आने वाला नन्हा जीव, दारू के नशे में धुत बीबी के साथ किये गये किस दिन के प्यार की निशानी है। जब भी वह रात को सोता तो सपने देखता कि उसका एक बेटा है, जो उसके काम में हाथ बँटा रहा है। जब वह सिर पर मिट्टी रखकर फेरे लगाते थक जाता तो थोड़ी देर किसी पेड़ की छाया में बैठकर बीड़ी का सुट्टा लगाता कि तभी ठेकेदार की कड़क आवाज आती- श्क्या बे कामचोर! पैसे तो दिन भर के लेता है तो काम क्या तेरा बाप करेगा?श् तब उसे लगता कि काश उसका कोई बेटा होता तो कभी-कभी वह उसे अपनी जगह भेजकर घर पर आराम करता। पर यह पेट भी बहुत हरामी चीज है जो हर कुछ बर्दाश्त करने की ताकत देता है।

एक दिन उसने टेलीविजन में देखा था कि प्रधानमंत्री पूरे देश में सड़कों का जाल बिछाने की घोषणा कर रहे थे और इससे हर साल करीब एक करोड़ रोजगार पैदा होने की बात कर रहे थे। कुछ ही दिनों बाद उसने देखा कि गाँव के बाहरी छोर पर एक बड़ा सा गड्ढा खोदा जा रहा है। पूछने पर पता चला कि उसका गाँव भी प्रधानमंत्री जी की घोषणा के अन्तर्गत जल्दी ही सड़क से शहर द्वारा जुड़ जायेगा। ठेकेदार मिट्टी के पूरे पैसे तो सरकार से लेता पर गाँव वालें को आँख तरेरता कि अगर अपने खेतों से मिट्टी मुत में नहीं दोगे तो सड़क कैसे बनेगी... ये ऊँचे-नीचे गड्ढे भरने के लिए तो तुम्हें मिट्टी देनी ही पड़ेगी। गाँव वाले भी सड़क के लालच में शहर जाने की सुविधा हो जाने के चक्कर में अपने खेतों से ठेकेदार को मुत में मिट्टी लेने की अनुमति दे देते। ठेकेदार के आदमी रोज दिहाड़ी पर काम करने वालों की सूची बनाते और अपना कमीशन काटकर शाम को उनकी मजदूरी थमा देते। उसने भी ठेकेदार के आदमियों के हाथ-पाँव जोड़कर किसी तरह काम पा लिया था और उन एक करोड़ लोगों में शामिल हो गया था, जिन्हें उस साल रोजगार मिला था। वह रोज सोचता कि अगर उसका कोई बेटा होता तो ठेकेदार के आदमियों के हाथ-पाँव जोड़कर उसका भी नाम सूची में लिखवाकर काम पर लगवा देता। वैसे भी काम मिले तो नाम से क्या मतलब? वह यह जानता था कि ठेकेदार के आदमी भले ही उसे हर रोज मजदूरी का पैसा देते हैं, पर कुछ दिनों के अन्तराल पर उसकी जगह कोई दूसरा नाम लिख देते हैं। धीमे-धीमे वह भी सरकार के एक करोड़ रोजगार का राज समझने लगा था। पर इससे उसे क्या फर्क पड़ता है, उसे तो बस मजदूरी से मतलब है।

एक दिन पंचायत भवन में लगे टेलीविजन में उसने देखा कि नयी सरकार हेतु अब फिर से वोट डाले जाने वाले हैं। टेलीविजन में बड़े-बड़े विज्ञापन दिखाये जा रहे थे, जिसमें गाँव को शहरों से जोड़ने वाली चमचमाती सड़क दिखायी गयी थी। वह बहुत देर तक सोचता रहा कि अभी तो अपने गाँव वाली सड़क बनी भी नहीं, फिर इसके फोटू टेलीविजन पर कैसे आ गये। उसने शहर से कमाकर लौटे एक नौजवान लड़के से इसके बारे में पूछा तो पहले तो उसने सिगरेट का पूरा धुंआ उसके मुँह पर दे मारा और फिर हँसता हुआ बोला-गंवार कहीं के! तेरे को बार-बार समझाता हूँ कि मेरे साथ शहर कमाने चल, थोड़ा वहाँ की दुनिया का भी रंग-ढंग देख। पर तेरे को बच्चा पैदा करने से फुर्सत मिले तो न? करीब पन्द्रह मिनट शहर के बारे में अपने शेखी बघारने के बाद उसने बताया कि जैसे टेलीविजन देश-दुनिया की हर खबर को दिखाता है, वैसे ही इससे भी नई एक मशीन कम्प्यूटर होती है जो जिस चीज को जैसे चाहो, वैसे बनाकर दिखा देती है। बात उसके पल्ले पड़ी तो नहीं पर वह मानो समझ गया के लहजे में सर हिलाकर घर की तरफ चल दिया। वह तो चाहता था कि ज्यादा दिन तक सड़क बने ताकि उसेे ज्यादा दिन तक काम मिल सके।

गाँव में पहले छुटभैया नेताओं और फिर चमचमाती कारों व जीपों के काफिले में बड़े नेताओं के दौरे आरम्भ हो गये थे। हर कोई गरीबी और भुखमरी मिटाने की बात कहता। जिस पार्टी का नेता आता हर घर पर उसी के झण्डे और बैनर दिखते। शाम को नुक्कड़ वाली चाय की दुकान में दिन भर नेता जी के पीछे दौड़ने और भीड़ जुटाने के एवज में मिली सहायता राशि से पीने-पिलाने का दौर शुरू होता। इधर ठेकेदार के आदमियों ने मजदूरी में से ज्यादा कमीशन काटना आरम्भ कर दिया, यह कहकर कि चुनाव में खाने-पीने का खर्चा कौन देगा? शाम को वह काम से लौटा तो देखा पंचायत भवन में भीड़ जुटी हुयी है। एक बाहरी सा दिखने वाला आदमी लोगों को बता रहा था कि अब मशीन से वोट पड़ेगा। जब मशीन की बटन दबाओगे और पीं बोलेगा तो समझना वोट पड़ गया।

चुनाव खत्म हो चुका था। एक दिन उसने देखा कि कोई नया ठेकेदार और उसके आदमी आये हैं। वह बहुत खुश हुआ क्योंकि पुराना ठेकेदार तो बहुत जालिम था। एक मिनट भी सुस्ताने बैठो तो गालियों की बौछार कर देता था। पर वह आश्चर्यचकित भी था कि ठेकेदार का तो इतना रौब था, फिर उसे कैसे हटा दिया गया? शाम को घर लौटते समय पंचायत भवन मे लगे टेलीविजन के पास भीड़ देखकर वह भी ठिठक गया। टेलीविजन पर एक खूबसूरत महिला जिन्दाबाद के नारों के बीच बोल रही थी कि- श्जनता अब परिपक्व हो चुकी है। उससे अपना वोट पिछली सरकार के विरूद्ध देकर हमारी पार्टी को सरकार बनाने का जनादेश दिया है।श् पंचायत भवन में ही उसने सुना कि उसके इलाके से कोई नये सांसद चुने गये हैं और नया ठेकेदार उन्हीं का आदमी है।

घर लौटते समय रास्ते भर वह अपनी अंगुली पर मतदान की निशानी के रूप में लगी स्याही को ध्यान से देखता रहा। एक बार तो उसने स्याही को सूंघकर उसकी गंध को समझने की भी कोशिश की, पर उसमें वह किसी भी गंध को न पा सका। उसे ताज्जुब हो रहा था कि इसी अंगुली से बटन दबाने से सरकार भी बदल जाती है। खैर, उसे दिल्ली में बैठी सरकार से क्या लेना-देना? वह तो यही सोचकर खुश था कि उसने अंगुली से जो बटन दबाई, वह पुराने ठेकेदार को हटाने में एक महत्वपूर्ण कारण है।

झोपड़े के अंदर उस स्त्री की प्रसव-पीड़ा और भी तेज हो चली थी। उसकी सास माँ उसके पेट पर तेजी से हाथ सहलाने लगी थी और सोच रही थी कि बहू की पुत्र-रत्न प्राप्ति के बाद वह किस मन्दिर में जाकर सबसे पहले सर नवायेगी। अचानक स्त्री पूरी तरह कराह के साथ छटपटा उठी और एक नव जीवन का पृथ्वी पर आविर्भाव हुआ। सास माँ ने तेजी से लालटेन लेकर गौर से नवजात शिशु का मुआयना किया तो उसका दिल धक से रह गया। उसकी सारी मनौतियों के बावजूद उसकी बहू के गर्भ से फिर एक बेटी का जन्म हुआ था। अपनी मनौतियों का ऐसा तिरस्कार वह नहीं बर्दाश्त कर पायी और यह भूलकर कि उसकी बहू ने अभी प्रसव-वेदना से मुक्ति पायी है, उसे डायन व तमाम आरोपों से नवाजने लगी। इन सबसे बेखबर माँ ने शिशु को अपने बदन से चिपका लिया, ऐसा लगा मानो उसकी सारी पीड़ा शिशु के बदन की गर्मी पाते ही छू-मंतर हो गयी।

पति ने नींद में ही बड़बड़ाते हुए अपनी माँ को शोर न मचाने का आदेश दिया। दारू का नशा अभी भी नहीं उतरा था। अपने अंश के आविर्भाव से अपरिचित वह सपने में देख रहा था कि उसका गाँव शहर से चमचमाती सड़क द्वारा जुड़ गया है। वह एक सम्पन्न किसान बन गया है और अपने बेटे को ट्रैक्टर पर बिठाकर अनाज बेचने शहर की तरफ जा रहा है।

कृष्ण कुमार यादव
भारतीय डाक सेवा
वरिष्ठ डाक अधीक्षक,
कानपुर मण्डल,कानपुर (उ0प्र0)-208001
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जीवन-वृत्त : कृष्ण कुमार यादव
भारत सरकार की सिविल सेवा में अधिकारी होने के साथ-साथ हिंदी साहित्य में भी जबरदस्त दखलंदाजी रखने वाले बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी कृष्ण कुमार यादव का जन्म १० अगस्त १९७७ को तहबरपुर आज़मगढ़ (उ. प्र.) में हुआ. जवाहर नवोदय विद्यालय जीयनपुर-आज़मगढ़ एवं तत्पश्चात इलाहाबाद विश्वविद्यालय से १९९९ में आप राजनीति-शास्त्र में परास्नातक उपाधि प्राप्त हैं. समकालीन हिंदी साहित्य में नया ज्ञानोदय, कादम्बिनी, सरिता, नवनीत, आजकल, वर्तमान साहित्य, उत्तर प्रदेश, अकार, लोकायत, गोलकोण्डा दर्पण, उन्नयन, दैनिक जागरण, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा, आज, द सण्डे इण्डियन, इण्डिया न्यूज, अक्षर पर्व, युग तेवर इत्यादि सहित 200 से ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं व सृजनगाथा, अनुभूति, अभिव्यक्ति, साहित्यकुंज, साहित्यशिल्पी, रचनाकार, लिटरेचर इंडिया, हिंदीनेस्ट, कलायन इत्यादि वेब-पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में रचनाओं का प्रकाशन. अब तक एक काव्य-संकलन "अभिलाषा" सहित दो निबंध-संकलन "अभिव्यक्तियों के बहाने" तथा "अनुभूतियाँ और विमर्श" एवं एक संपादित कृति "क्रांति-यज्ञ" का प्रकाशन. बाल कविताओं एवं कहानियों के संकलन प्रकाशन हेतु प्रेस में. व्यक्तित्व-कृतित्व पर "बाल साहित्य समीक्षा" व "गुफ्तगू" पत्रिकाओं द्वारा विशेषांक जारी. शोधार्थियों हेतु आपके व्यक्तित्व-कृतित्व पर एक पुस्तक "बढ़ते चरण शिखर की ओर : कृष्ण कुमार यादव" शीघ्र प्रकाश्य. आकाशवाणी पर कविताओं के प्रसारण के साथ दो दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित काव्य-संकलनों में कवितायेँ प्रकाशित. विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर सम्मानित. अभिरुचियों में रचनात्मक लेखन-अध्ययन-चिंतन के साथ-साथ फिलाटेली, पर्यटन व नेट-सर्फिंग भी शामिल. बकौल साहित्य मर्मज्ञ एवं पद्मभूषण गोपाल दास 'नीरज'- " कृष्ण कुमार यादव यद्यपि एक उच्चपदस्थ सरकारी अधिकारी हैं, किन्तु फिर भी उनके भीतर जो एक सहज कवि है वह उन्हें एक श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में प्रस्तुत करने के लिए निरंतर बेचैन रहता है. उनमें बुद्धि और हृदय का एक अपूर्व संतुलन है. वो व्यक्तिनिष्ठ नहीं समाजनिष्ठ साहित्यकार हैं जो वर्तमान परिवेश की विद्रूपताओं, विसंगतियों, षड्यंत्रों और पाखंडों का बड़ी मार्मिकता के साथ उदघाटन करते हैं."

सम्प्रति/सम्पर्क: कृष्ण कुमार यादव, भारतीय डाक सेवा, वरिष्ठ डाक अधीक्षक, कानपुर मण्डल, कानपुर-208001
ई-मेल: s
kkyadav.y@rediffmail.com
ब्लॉग:
www.kkyadav.blogspot.com

14 टिप्‍पणियां:

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

कृष्ण कुमार यादव द्वारा ‘‘बेटे की तमन्ना‘‘ कहानी में दलित बस्ती के मजदूर की मनौती की भावना को बड़े मर्मस्पर्शी शब्दों में प्रस्तुत किया गया है। चार-चार बेटियों के बाद भी मजदूर और उसकी माँ इसी अभिलाषा में जीते हैं कि काश एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जाये, परन्तु प्रकृति के नियम भी कभी-कभी अपवाद बन जाते हैं।... कहानी में धार है.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…
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Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा है.समाज की सोच पर चोट करती सार्थक कहानी..बधाई.

Akanksha Yadav ने कहा…

‘‘बेटे की तमन्ना‘‘ कहानी में शब्दों की मारक क्षमता पाठकों के हृदय को झकझोर देने के लिए पर्याप्त है। अनेक स्तरों को समेट सकने वाले वाक्यों में गुणीभूत व्यंग्य की तीखी धार है। यह अद्भुत है और व्यक्त न होने वाली संवेदनाओं को यहाँ संभव बना गई है।

Amit Kumar Yadav ने कहा…

इस कहानी में राजनैतिक बदलाव के निचले स्तर पर पड़ने वाल प्रभाव को भी बखूबी रेखांकित किया गया है। इससे कहानी में जीवन्तता आ गई है.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

इस कहानी में राजनैतिक बदलाव के निचले स्तर पर पड़ने वाल प्रभाव को भी बखूबी रेखांकित किया गया है। इससे कहानी में जीवन्तता आ गई है.

बेनामी ने कहा…

समकालीन समय और समाज से जुड़ाव कहानीकार के लिए अनिवार्य है, इस कहानी में kk ji ने वर्तमान समाज और परिवेश की परिस्थितियों को बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है।

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

एक निरीह अबला प्रसवकाल में बेचैनी से व्याकुल है, उसका चौथा अंश पुत्री के रूप में दंश बनता है और उस महिला की सास उसे डायन बताती है। कहानीकार के अन्तर्मन की वेदना और संवदेनशील वैचारिक शैली ने मजदूर के तिरस्कृत जीवन की हकीकत को कहानी रूप में परोसा है।

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

बहुत अच्छी कहानी है,बधाई।

Unknown ने कहा…

समाज की कुरीतियों पर चोट करती कहानी पहली नजर में ही प्रभावित करती है.कृष्ण कुमार जी को बहुत-बहुत बधाई

शरद कुमार ने कहा…

जमीनी सच को उजागर करती कहानी.कहानीपन में जान है।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

anginat badlaaw ke baawjood is chah me koi badlaaw nahi !beti k liye koi nahi rukta,achha hota beti ka sansaar me aagman rook jaye......phir dekhen prabhu ki leela.......meri yahi pukaar hai,hari ab kuch aisa hi karen,tab sunungi bhasha chahnewalon ki.....
nibandh me aapne bahut kuch utaara,jo dil ko chhu gaya

Shikha Deepak ने कहा…

यथार्थ का सुंदर चित्रण करती सजीव कहानी। अच्छी लगी।