28 अप्रैल 2009

गार्गी गुप्ता की कविता - मेरी तनहाई

मेरे पास है बस मेरी तनहाई
बस इसी ने ही दोस्ती निभाई।
जब छोड रही थी मुझे मेरी परछाई
तब इसी ने आकार हिम्मत बंधाई।।

है पास मेरे मेरी तन्हाई
फिर किसी से रखु कैसी रुसबाई।
चन्द लम्हो में सारा जहाँ लुट गया
एक दौलत बची वो थी तनहाई।।

भूल बैठे थे हम इस हसी दोस्त को
पर चुप रह कर भी जो साथ चली वो थी मेरी तन्हाई ।
भरोसा है मुझे जब कोई साथ न होगा
तब साथ देगी मेरा मेरी तनहाई।।

तू अगर साथ है तो फिर कैसी रुसबाई
बस एक तू ही मेरे मन को है भाई।
संग चलती है मेरे खामोश रह कर
किस कदर शुक्रिया अदा करु मैं अदा मेरी तनहाई ।।
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गार्गी गुप्ता
www.abhivyakti.tk

3 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

मेरे पास है बस मेरी तनहाई
बस इसी ने ही दोस्ती निभाई।
भावपूर्ण रचना के लिये बधाई.

sanjeev kuralia ने कहा…

अति सुंदर भाव...!

sanjeev kuralia ने कहा…

अति सुंदर भाव...!