18 अगस्त 2009

"रिश्ते"

(1)

कल रात
एक और रिश्ते की
मौत हो गई
पड़ोस में
अतिवेदना के स्वर
कुत्ते-बिल्ली का रोना था
सुबह-सवेरे उठ कर
कोई नया रिश्ता जोड़ना था
तकियों में सिर छुपाये
लंबी तान सो रहे
भई
किसे फुर्सत है मरने की
मिट्टी परआँख भरने की !

(2)

एक बार फिर
कोई रिश्ता मर गया
उम्र भर
जिसने चूमा-चाटा
साथ सुलाया
उससे ही
भरी भीड़ में
डर गया !

-डा0 अनिल चड्डा

3 टिप्‍पणियां:

hem pandey ने कहा…

रिश्ते की अनूठी परिभाषा.

अर्चना तिवारी ने कहा…

अत्यंत मार्मिक रचना...सच है

डॉ० अनिल चड्डा ने कहा…

पाँडेजी एवँ अर्चनाजी,

रचना आपको पसन्द आई, मन को अच्छा लगा । प्रोत्साहन के लिये आभारी हूँ ।