02 मार्च 2009

दीपक चौरसिया की कविता

खूंखार हुए कौरव के शर, गाण्डीव तेरा क्यों हल्का है?
दीपक चौरसिया की कविता

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खूंखार हुए कौरव के शर, गाण्डीव तेरा क्यों हल्का है?
अर्जुन रण रस्ता देख रहा,
विश्राम नहीं इक पल का है।
तमतमा उठो सूरज से तुम,
खलबली खलों में कर दो तुम,
विध्वंस रचा जिसने जग का,
उसको आतंक से भर दो तुम।
ये दुनिया जिससे कांप रही,
उसको आज कंपा दो तुम।
कि हदें हदों की ख़त्म हुईं,
तुम देखो धैर्य भी छलका है।
खूंखार हुए कौरव के शर, गाण्डीव तेरा क्यों हल्का है?
क्षण भर भी जो तुम ठहर गए,
ये धरा मृत्यु न पा जाये,
बारूद यहाँ शैतानों का,
मानव जीवन न खा जाये।
अमृत देवों के हिस्से का,
दैत्यराज न पा जाये,
पीड़ा ह्रदय की असाध्य हुई,
आँसू हर नेत्र से ढुलका है।
खूंखार हुए कौरव के शर, गाण्डीव तेरा क्यों हल्का है?
क्यों खड़े अभी तक ठगे हुए,
अब कान्हा कोई न आयेगा,
थामो अश्वों की बागडोर,
ना ध्वजरक्षक ही आयेगा।
तुम स्वयं पूर्ण हो गए पार्थ,
अब गीता न कोई सुनाएगा,
जो ज्वालामुख ये दहक उठे तुम,
स्वर्णिम भारत फिर कल का है।
खूंखार हुए कौरव के शर, गाण्डीव तेरा क्यों हल्का है?

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दीपक चौरसिया 'मशाल'
स्कूल ऑफ़ फार्मेसी
९७, लिस्बर्न रोडबेलफास्ट
(युनाईटेड किंगडम) BT9 7BL

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