12 मार्च 2009

कवि कुलवंत सिंह की पाँच ग़ज़ल

1.

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इतना भी ज़ब्त मत कर आँसू न सूख जाएँ
दिल में छुपा न ग़म हर आँसू न सूख जाएँ

कोई नहीं जो समझे दुनिया में तुमको अपना
रब को बसा ले अंदर आँसू न सूख जाएँ

अहसास मर न जाएँ, हैवान बन न जाऊँ
दो अश्क हैं समंदर आँसू न सूख जाएँ

मंजर है खूब भारी अपनों ने विष पिलाया
देवों से गुफ़्तगू कर आँसू न सूख जाएँ

कैसे जहाँ बचे यह आँसू की है न कीमत
दुनिया बचा ले रोकर आँसू न सूख जाएँ

2


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खेल कुर्सी का है यार यह,
शव पड़ा बीच बाज़ार यह ।

कैसे जीतेगी भुट्टो भला,
देते हैं पहले ही मार यह ।

नाम लेते हैं आतंक का,
रखते हैं खुद ही तलवार यह ।

रात दिन हैं सियासत करें,
करते बस वोट से प्यार यह ।

भूल कर भी न करना यकीं,
खुद के भी हैं नहीं यार यह ।

दल बदलना हो इनको कभी,
रहते हर पल हैं तैयार यह ।

देख लें घास चारा भी गर,
खूब टपकाते हैं लार यह ।

पेट इनका हो कितना भरा,
सेब खाने को बीमार यह ।

अब करें काम हम अपने सब,
छोड़ बातें हैं बेकार यह ।

3.

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चुभा काँटा चमन का फूल माली ने जला डाला
बना हैवान पौधा खींच जड़ से ही सुखा डाला

चला मैं राह सच की हर बशर मेरा बना दुश्मन
जो रहता था सदा दिल में जहर उसने पिला डाला

बड़ी हसरत से उल्फ़त का दिया हमने जलाया था
उसे काफ़िर हवा ने एक झटके में बुझा डाला

सताया डर कि दौलत बँट न जाए पैसे वालों को
थे खुश हम खा के रूखी छीन उसको भी सता डाला

उजाड़े घर हैं कितने उसने पा ताकत को शैतां से
बसाने घर कुँवर का अपनी बेटी को गला डाला


4.

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जब से गई है माँ मेरी रोया नहीं
बोझिल हैं पलकें फिर भी मैं सोया नहीं

ऐसा नहीं आँखे मेरी नम हुई न हों
आँचल नहीं था पास फिर रोया नहीं

साया उठा अपनों का मेरे सर से जब
सपनों की दुनिया में कभी खोया नहीं

चाहत है दुनिया में सभी कुछ पाने की
पायेगा तूँ वह कैसे जो बोया नहीं

इंसा है रखता साफ तन हर दिन नहा
बीतें हैं बरसों मन कभी धोया नहीं


5.

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तप कर गमों की आग में कुंदन बने हैं हम
खुशबू उड़ा रहा दिल चंदन सने हैं हम

रब का पयाम ले कर अंबर पे छा गए
बिखरा रहे खुशी जग बादल घने हैं हम

सच की पकड़ के बाँह ही चलते रहे सदा
कितने बने रकीब हैं फ़िर भी तने हैं हम

छुप कर करो न घात रे बाली नहीं हूँ मैं
हमला करो कि अस्त्र बिना सामने हैं हम

खोये किसी की याद में मदहोश है किया
छेड़ो न साज़ दिल के हुए अनमने हैं हम


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कवि कुलवंत सिंह
Kavi Kulwant singh
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