10 मार्च 2009

दीपक चौरसिया की बापू पर दो कवितायें

1

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फिर बापू भी खुश होते

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और हम बहुत खुश हैं
की अब फिर से
वो सब हिन्दोस्तान की अमानत हैं,
एक ऐनक,
एक घडी,
और कुछ भूला बिसरा सामान.
हमें प्यार है,
हमें प्यार है इन सामानों से
क्योंकि,
ये बापू की दिनचर्या का हिस्सा थे.
पर ऐसा करने से पहले,
दिल में बैठे बापू से
एक मशविरा जो कर लेते
तो बापू भी खुश होते.

ये वो ऐनक है जिससे,
बापू सब साफ़ देखते थे.
पर हम नहीं देख सकते साफ़ इससे भी
इससे हमें दिखेंगे
मगर दिखेंगे हिन्दू, दिखेंगे मुसलमान,
दिखेंगे सवर्ण, दिखेंगे हरिजान,
दिखेगी औरत, दिखेगा मर्द,
दिखेगा अमीर, दिखेगा गरीब,
दिखेगा देशी और विदेशी.
मगर शायद बापू इसी ऐनक से
इंसान देखते थे
और बापू के आदर्शों कि बोली
इक पैसा भी लगा पाते,
तो बापू भी खुश होते.

हम ले आये वो घड़ी
जिसमे समय देखते थे बापू,
शायद अभी भी दिखें उसमें
बारह, तीन छः और नौ,
हम देखते हैं सिर्फ आंकडे
पर क्या
बापू यही देखते थे?
या .......
वो देखते थे बचा समय
बुरे समय का,
और कितना है समय
आने में अच्छा समय.
वो चाहते थे बताना
चलना साथ समय के,
पर जो हम बापू के उपदेशों की घडियां
इक पैसे में भी पा लेते,
तो बापू भी खुश होते.

जिसने दीनों की खातिर,
इक पट ओढ़
बिता दिया जीवन,
उसके सामानों की गठरी
हम नौ करोड़ में ले आये,
और हम बहुत खुश हैं.
जो उस नौ करोड़ से मिल जाती रोटी,
बापू के दीनों, प्यारों को
तो बापू भी खुश होते,
जो बापू के सामानों से ज्यादा
करते बापू से प्यार,
सच्चाई की राह स्वीकार
तो बापू भी खुश होते
अभी हम हैं
फिर बापू भी खुश होते

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बोली कब लगनी है?

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बापू तेरी सच्चाई की बोली कब लगनी है,
घड़ियाँ, ऐनक सब बिक गए,
कह तो दे इक बार तू मुझसे
कब प्यार की बोली लगनी है.
बापू तेरी सच्चाई की.....

उम्मीद मुझे है सस्ते में,
मैं ये सब पा जाऊंगा,
शायद नीलामी के दिन मैं,
भीड़ बड़ी न पाऊंगा.
बापू तेरे आदर्शों की बोली कब लगनी है.

है खण्ड-खण्ड अखण्ड राष्ट्र अब,
अखण्ड हुए दुश्मन सारे,
अब लकुटी भी तेरी ए साधू,
हिंसा का हथियार बनी.
बापू तेरे उपदेशों की बोली कब लगनी है..

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दीपक चौरसिया 'मशाल'
स्कूल ऑफ़ फार्मेसी
९७, लिस्बर्न रोडबेलफास्ट
(युनाईटेड किंगडम) BT9 7BL

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