ताजमहल के स्थपति जब 1631 में उपयुक्त स्थान खोज रहे थे, तब उनके समक्ष कुछ आदर्श थे, जैसे कि शहर की हलचल से दूर, प्रकृति के सानिध्य में, नदी के किनारे कोई ऐसा स्थान हो जहाँ पानी की धारा का दबाव (धक्का) कम हो। सबसे बड़ा मापदण्ड ताज को प्रकृति और नदी से अभिन्न रूप से जोड़ना था। दरअसल पहले नदी के किनारे सभ्यताएं बसती थी, बड़ी-बड़ी ऐतिहासिक इमारतें इर्द-गिर्द बनती थीं। नदी का किनारा संचार और यात्रा के लिये भी उपयुक्त था। बस कश्ती नदी में डालिए और बहते चले जाइये। ऐसे में रोमांटिक पहलू के साथ जिंदगी की बेसिक नीड का भी रिश्ता है। ताजमहल के निर्माण में शायद यही मुख्य चुनौती रही होगी। श्वेत स्फटिक के इस मकबरे को पूर्ववर्ती मकबरों की तरह चार बाग के बीचों बीच नहीं बनाया जाना था, बल्कि ठीक यमुना के ऊपर खड़ा करना था जिससे इसकी पृष्ठभूमि में मात्र नील आकाश हो, जिसमें नित नये रंग बनें और वे ताज के श्वेत संगमरमर पर उतरें और वह प्रत्येक क्षण नवीन और अप्रतिम सुंदर दिखाई दे।
आगरा में शाहजहाँ की पत्नी अर्जुमन्द बानो बेगम (जो मुमताज महल के नाम से अधिक प्रसिद्ध है) का मकबरा ताजमहल, शाहजहाँ द्वारा निर्मित भवनों में सर्वोत्कृष्ट और भव्यतम है। साम्राज्ञी मुमताज महल के नाम पर इसे ताजमहल नाम दिया गया। 1631 ई. में इस ताजमहल का निर्माण कार्य प्रारम्भ किया गया और इसे पूरा करने में बाईस वर्ष लगे। अर्थात् 1653 में यह पूर्ण रूप से बनकर तैयार हुआ। ‘एक विस्तृत बगीचे के उत्तरी भाग में सफेद संगमरमर की बनी हुई इमारत संसार की श्रेष्ठतम इमारतों में स्थान रखती है। भूमि से 22 फीट ऊंचे संगमरमर के चबूतरे पर बनी हुई यह इमारत करीब 108 फीट ऊंची है। यद्यपि इसका मध्य का गुम्बद 187 फीट ऊंचा है। चबूतरे के चारों कोनों पर चार सफेद मीनारें हैं और इसकी बगल से यमुना नदी बहती है। मध्य के ऊपरी भाग में मुमताज महल और शाहजहाँ की नकली कब्र हैं और नीचे के भाग में उन दोनों की असली कब्र हैं। सुन्दर पच्चीकारी से अलंकृत जालियाँ, बेलबूटों से सजी हुई दीवारें तथा लम्बाई, चैड़ाई और ऊंचाई की दृष्टि से इमारत को एक इकाई का रूप प्रदान करने वाली कला न केवल ताजमहल के सौन्दर्य को बढ़ाने वाली है अपितु ताजमहल एक सम्पूर्ण इकाई के रूप में संगमरमर में ढाला गया एक स्वप्न है जो एक महान सौन्दर्य का प्रतीक माना जा सकता है। शाहजहाँ मुमताज महल के सौन्दर्य को एक मूर्ति में तो नहीं ढाल सकता था क्योंकि वह इस्लाम धर्म के विरूद्ध था परन्तु उसने उसके सौन्दर्य को ताजमहल का निर्माण करके व्यक्त कर दिया।’ इसे काव्यात्मक रूप में ‘‘संगमरमर में संवेदनशील शोक गीत’’ के रूप में वर्णित किया गया है। वहीं दूसरी ओर हावेल इसे ‘‘भारतीय नारीत्व की साकार प्रतिमा’’ कहते हैं। वह लिखते हैं कि ‘‘यह एक ऐसा महान् आदर्श विचार है जो स्थापत्य-कला में नहीं बल्कि मूर्ति-कला से सम्बन्धित है।’’ कुछ कलाविदों का यह मत कि ताज का मुख्य स्थपति वेनिस निवासी जेरोनिमों वेरोनिया या फ्रांसीसी स्वर्णकार बार्दियो थे, पूर्णता भ्रामक है। उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर ताजमहल का मुख्य स्थपति या स्थापत्यकार उस्ताद अहमद लाहौरी था, जिसे नादिर-उल-असरार की उपाधि प्रदान की गई और ताजमहल का प्रधान मिस्त्री या निर्माता ईसा खाँ था।
ताजमहल वास्तव में धरती पर अजीम प्रेम की एक ऐसी इबारत है, जिसे हर दिल पढ़ना चाहता है। इसकी सांगीतिक ज्यामिती का मादक माधूर्य ज्योत्सनावत शुभ्रता में सनी स्निग्ध निर्मलता, आकाश की पुतलियों जैसी गोलाइयां और पास खड़े होने पर इसकी विशालता और उदात्तता का प्रखर बोध बड़े से बड़े शासक, तानाशाह, विद्वान, दार्शनिक, कवि, कलाकार के भीतर विराट अहमस्मि अवधारणा को चकनाचूर कर देता है, करोड़ों दर्शकों के मन को अपने अकल्पनीय प्रदर्शन से चमत्कृत कर देने वाले जादूगर के हाथ में नाचती जादुई छड़ी भी ताजमहल के अप्रतिम सौन्दर्य के सामने कुछ भी कर देने की अपनी शक्ति खो बैठती है। क्योंकि यह एक ताकतवर शहंशाह के फकीराना अंदाज की अभिव्यक्ति है, यह धरती के कैनवस पर एक अनोखी रचना है, जिसमें एक सच्चे प्रेमी का हृदय साढ़े तीन सौ साल से अधिक समय से धड़क रहा है। जो भी ताज के पास होता है, उसकी धड़कन के एहसास से भर जाता है, कुछ क्षणों के लिए ही सही, सारे मानसिक रचना-संसार से मुक्त हो जाता है, भीतर होता है केवल ताज, प्रेम का एहसास भर मात्र। आखिर क्यों ‘खींचती है यह इमारत अपनी तरफ, क्या है इसके आकर्षण का जादू, क्यों दुनिया का हर वह व्यक्ति जिसने इसके बारे में सुना है, इसे एक बार देख लेना चाहता है ? क्यों और कैसे हुई है इसके आकर्षण की सृष्टि ? क्या है इसके सौन्दर्य की संरचना ? वह खनिज सम्पदा-सामग्री, जो इसके निर्माण के लिए जहाँ से भी जुटाई जा सकती थी, जुटाई गयी, हजारों-लाखों का वह श्रम जो अठारह वर्षों तक इसमें झोंका जाता रहा, दुनिया के श्रेष्ठतम वास्तुकार-शिल्पियों की अप्रतिम कारीगरी, वह अकूत धन जिसे सिर्फ एक शहंशाह ही जुटा सकता था, यह राजसत्ता जिसने इस शहंशाह को राजकोष के मनचाहे इस्तेमाल का अधिकार दिया था, या एक शहंशाह का अपनी पत्नी के प्रति उत्कट प्रेम या फिर इस प्रेम की ओट में काल के कपाल पर स्वयं अपना अमरत्व टांक देने की उद्दाम महत्वाकांक्षा ? कौन तय करेगा कि इस भवन-कृति के निर्माण में कौन-सा तत्व प्रमुख था और कौन सा गौण ? ‘‘साहिर को गरीबों की मुहब्बत का मजाक भले ही लगा हो पर प्रेम के इस आंसू की निर्मित सर्वसत्तावादी कोई शहंशाह ही करा सकता था। उस शहंशाह के प्रेम के मूर्तन के लिए कितनों के जीवन छितरे-बिखरे, यह आज किससे पूछा जाये और किसलिए ? अपने अस्तित्व के तमाम सवालों-शंकाओं से परे ताजमहल वास्तुशिल्प की जीवंत-विराट और अकल्पनीय-सी कलाकृति के रूप में मौजूद है। आंखों को बांधता हुआ लुभाता हुआ और अपने भूक्षेत्र की अनगिनत जिंदगियों को अनेकानेक स्तरों पर प्रभावित करता हुआ।’
अपने गौरव शाली अतीत की स्वर्णिम् आभा बिखरने वाले प्रेम की निशानी, धकड़ते दिलों की कसमों का केन्द्र विश्व का आश्चर्य ताजमहल का संगमरमरी सफेद रंग न केवल बदरंग हो रहा है। वरन् प्रदूषण के कारण ताजमहल की सुंदरता समाप्त होती जा रही है। इसका रंग-काला-पीला पड़ रहा है यूनेस्को की रिपोर्ट सूचित करती है कि किसी भी ऐतिहासिक इमारत के आसपास का निर्माण एस0 पी0 एम0 यानी खनन कणों की मात्रा बढ़ाता है जो इमारत के लिए खतरा है। इसके तहत यह निष्कर्ष निकलता है कि अक्सर आती तेज हवाएं एस0 पी0 एम0 की मात्रा दो हजार घनमीटर तक कर देती हैं, जबकि वैज्ञानिक मानदण्डों के अनुसार यह मात्रा सौ घन मीटर से ऊपर नहीं जानी चाहिए। अब इस आशय के साक्षात प्रमाण मिले हैं कि हवा में घुलते रसायन इमारतों पर जीने वाले फंजाई, अल्गी, जीवाणु आदि के लिए भोजन का जरिया बनते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि यदि ताजमहल जैसी सांस्कृतिक धरोहरों को बचाना है तो ‘जैव दुर्दशा’ को समाप्त करना होगा। जटिल सूक्ष्म जैव समूह संगमरमर या पत्थर को विभिन्न तरीकों से क्षति पहुँचाते हैं। कुछ आर्गनिज्म दीवारों या धरातल पर जमा रहते हैं, कुछ रंग बिगाड़ते हैं और कुछ छिद्र कर देते हैं। भवनों में नाइट्रोजन और गंधक की वर्षा जीवाणुओं के लिए पोषक तत्वों का कार्य करती है, जिन्हें वे नाइट्रिक तथा सल्फुरिक एसिड में बदल लेते हैं। ये एसिड फिर कैल्शियम और मैग्नेशियम जैसी बाइंडिंग सामग्री से प्रतिक्रिया कर घुलनशील पदार्थ बना लेती है। जल और वायु प्रदूषण से ताजमहल को बहुत क्षति हुई है क्योंकि इस प्रदूषण से जैव दुर्दशा को बढ़ावा मिला है। इमारतों पर जमने वाली जैव फिल्म बहुत विनाशक सिद्ध हुई है। इसके कारण प्रदूषण जमाव दो-गुना-तीन गुना तक पहुँच जाता है और पत्थर का कटाव अंदर से तेज हो जाता है।
पुरातत्व महत्व की प्राचीन इमारतें जहाँ एक ओर हमारे सभ्यता की धरोहर हैं, वहीं दूसरी ओर हमारे लिए आकर्षण का केन्द्र भी हैं इसी से पर्यटन का जन्म होता है। सरकारी रिपोर्ट भी यही कहती है कि प्राचीन पुरातत्व महत्व की इमारतों पर सुहानी रातें सजाने का इंतजाम किया जाएगा। खासकर रात में होती पार्टियां तो झकाझक रोशनी की मांग करती हैं। इन्हें आकर्षण बनाने के लिए तेज रोशनी वाले बिजली के बल्ब, टयूब लाइट्स आदि का प्रयोग किया जाता है। इन गतिविधियों पर वैज्ञानिकों ने एतराज किया है और कहा है कि तीव्र रोशनी न केवल ऐतिहासिक धरोहरों की दीवारों को बदरंग कर रही हैं बल्कि उसमें क्षरण भी हो रहा है। कुछ स्थानों पर तो तेज चकत्ते भी बन जाते हैं क्योंकि तीव्र रोशनी इमारत का तापमान दो से तीन डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा देती है इस अचानक बढ़े तापमान से इमारत में प्रयुक्त धातु में फैलाव और ठंडा होने पर सिकुड़ने की प्रक्रिया होने लगती है इससे धातु हिल-हिल कर दीवार में चटकाव पैदा करती है, जहाँ एक ओर क्षरण की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है वहीं दूसरी ओर समूची दीवार के गिरने का खतरा भी पैदा हो जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि फर्श और छत पर लायी गयी तीव्र रोशनी अपेक्षाकृत अधिक हानिकारक होती है, चूंकि इसका फैलाव बहुत अधिक होता है, इसलिए दीवारें गुंबद और जोड़ इसके प्रभाव क्षेत्र में जल्द आ जाते हैं।
ताजमहल के नये खतरों में सन् 1970 ई. के दशक में मथुरा में स्थापित रिफाइनरी का नाम सबसे ऊपर है। इस तेल शोधक कारखाने में छोड़ी जाने वाली तेजाबी गैसों के कारण ताजमहल के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है विशेषज्ञों ने रिफाइनरी से छोड़ी जाने वाली गैसों में सल्फर डाई आक्साइड की मौजूदगी को सबसे खतरनाक बताया है जो ताजमहल की कोमल संगमरमरी काया को बदरंग और बदहाल बना रही है। हालाँकि रिफाइनरी ने विशेषज्ञों की इन चेतावनियों के बाद ऐसी व्यवस्था कर दी कि सल्फर डाई आक्साइड और अन्य जहरीली गैसें उचित ट्रीटमेंट के बाद ही हवा में घुलें। लेकिन खतरा फिर भी बरकरार है। एक अनुमान के अनुसार हर दिन दस हजार से भी ज्यादा ट्रक डीजल के धुएं के साथ अनेक तेजाबी गैसें ताजमहल के आस-पास छोड़ जाते हैं। एक दशक से अधिक समय से सुप्रीम कोर्ट इस ऐतिहासिक मकबरे की निगरानी का कार्य स्वयं देख रहा है। कोर्ट ने ताजमहल के दो किलोमीटर के परिक्षेत्र को धुएं वाले किसी भी वाहन के लिए प्रतिबंधित कर दिया है। साथ ही ताज के चारों ओर ट्रैपेजियम के रूप में रक्षा कवच बनाने की योजना पर भी मुहर लगा दी है परन्तु ट्रैपेजियम की योजना करीब एक दशक से जहां की तहां ठहरी हुई है दूसरी ओर ताजमहल को इन तमाम खतरों से बचाने के उपायों के प्रति फिरोजाबाद ग्लास कारखानों के संचालक पूरी तरह उदासीन हैं। ताजमहल के प्रदूषण को लेकर काफी चर्चा की जा चुकी है। बावजूद इसके वहाँ आज भी शूटिंग्स का दौर जारी है। पिछले कुछ दिन पहले एक बड़े बैनर तले लाख मनाही के बाद भी शूटिंग हुई। ऐतिहासिक महत्व की फिल्मों और धारावाहिकों में सत्यता लाने के लिए ऐतिहासिक इमारतों में शूटिंग करना एक चलन बन गया है लेकिन यह कार्य/कृत्य ऐतिहासिक इमारतों के लिए हानिकारक साबित हो रहे हैं। शूटिंग की रोशनी, भारी भरकम उपकरणों को इधर-उधर खींचना, रसायनों का प्रयोग करने जैसे काम इमारत को हानि पहुँचाते हैं।
प्रेम की पूर्णता की अभिव्यक्ति के लिए ताज का प्रतिमान पुराना पड़ने लगा है क्योंकि ताजमहल की हालत अंदर से खराब होती जा रही है। करीब पैंतालीस साल पहले उसकी चारों मीनारें बंद कर दी गयी है अभी कुछ पिछलें सालों में पहले शाही कब्रों के दरवाजे भी बंद किये जा चुके हैं। वहां कोई नहीं जा सकता।
यहाँ हम सिर्फ इतना ही कहना चाहेंगे कि ताजमहल के चारों ओर का वातावरण खूबसूरत होना चाहिए जबकि गंदगी और अव्यवस्था बढ़ती जा रही है। आज आगरा और ताजमहल के आसपास बेरोजगारी-गरीबी बड़े पैमाने पर पसरी है। आगरा एक ही मामले में आज तरक्की कर रहा है और वह है पर्यटकों-यात्रियों को लूटने और धोखा देने के नये-नये तरीकों के इजाद में। यह सच है कि ताजमहल ने आगरा को शोहरत और इज्जत दी है, पर आगरा पर एक बोझ भी दिया है। आगरा शहर ताजमहल का बोझ भी उठा रहा है। ताजमहल पर प्रसिद्ध साहित्यकार राजेन्द्र यादव की टिप्पणी सटीक बैठती है कि - ‘‘ताजमहल संगमरमर के अक्षरों में लिखा गया प्यार का गीत है, काल के कपोल पर ठहरा हुआ आंसू है, मृत्यु पूजन की विकृत मानसिकता है या गरीबों की मुहब्बत का मजाक है। वह प्यार की नहीं, प्यार की लाश के लिए श्रद्धांजलि है ...... एक ऐसा मर्सिया जो उल्लास और उत्सव की फुलझड़ी है, यमुना की जली और काली लकड़ी पर उगा हुआ कुकुरमुत्ता ...... सब मिलाकर एक भव्य प्रायश्चित का नाम ताजमहल है।’’ महान कवि दिनकर ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है - ‘मानव के शोषण के प्रतीक ये ताजमहल, ये ताजमहल।’
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सम्पर्क: वरिष्ठ प्रवक्ता हिन्दी विभाग,
दयानन्द वैदिक स्नातकोत्तर महाविद्यालय
उरई-जालौन (उ0प्र0)-285001 भारत
शैक्षणिक गतिविधियों से जुड़े युवा साहित्यकार डा0 वीरेन्द्रसिंह यादव ने साहित्यिक, सांस्कृतिक, र्धार्मक, राजनीतिक, सामाजिक तथा पर्यावरर्णीय समस्याओं से सम्बन्धित गतिविधियों को केन्द्र में रखकर अपना सृजन किया है। इसके साथ ही आपने दलित विमर्श के क्षेत्र में ‘दलित विकासवाद ’ की अवधारणा को स्थापित कर उनके सामाजिक,आर्थिक विकास का मार्ग भी प्रशस्त किया है। आपके सैकों लेखों का प्रकाशन राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की स्तरीय पत्रिकाओं में हो चुका है। आपमें प्रज्ञा एवमृ प्रतिभा का अदृभुत सामंजस्य है। दलित विमर्श, स्त्री विमर्श, राष्ट्रभाषा हिन्दी एवम पर्यावरण में अनेक पुस्तकों की रचना कर चुके डा वीरेन्द्र ने विश्व की ज्वलंत समस्या पर्यावरण को शोधपरक ढंग से प्रस्तुत किया है। राष्ट्रभाषा महासंघ मुम्बई, राजमहल चैक कवर्धा द्वारा स्व0 श्री हरि ठाकुर स्मृति पुरस्कार, बाबा साहब डा0 भीमराव अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान 2006, साहित्य वारिधि मानदोपाधि एवं निराला सम्मान 2008 सहित अनेक सम्मानो से उन्हें अलंकृत किया जा चुका है। वर्तमान में आप भारतीय उच्च शिक्षा अध्ययन संस्थान राष्ट्रपति निवास, शिमला (हि0प्र0) में नई आर्थिक नीति एवं दलितों के समक्ष चुनौतियां (2008-11) विषय पर तीन वर्ष के लिए एसोसियेट हैं।
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