कृष्ण कुमार यादव का जीवन परिचय यहाँ देखें
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पालिश
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साहब पालिश करा लो
एकदम चमाचम कर दूँगा
देखता हूँ उसकी आँखों में
वहाँ मासूमियत नहीं, बेबसी है
करा लो न साहब
कुछ खाने को मिल जायेगा
सुबह ही पालिश किया जूता
उसकी तरफ बढ़ा देता हूँ
जूतों पर तेजी से
फिरने लगे हैं उसके हाथ
फिर कंधों से रूमाल उतार
जूतों को चमकाता है
हो गया साहब
उसकी खाली हथेली पर
पाँच का सिक्का रखता हूँ
सलामी ठोक आगे बढ़ जाता है
सामने खड़े ठेले से
कुछ पूड़ियाँ खरीद ली हैं उसने
उन्हीं गंदे हाथों से
खाने के कौर को
मुँह में डाल रहा है
मैं अपलक उसे निहार रहा हूँ।
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कृष्ण कुमार यादव
भारतीय डाक सेवा
वरिष्ठ डाक अधीक्षक,
कानपुर मण्डल, कानपुर-208001
e-mail - kkyadav.y@rediffmail.com
10 टिप्पणियां:
अच्छी कविता लिखी है आपने यह घटना मुझे अक्सर एल० सी ० में दिखाई देती है
Jeewan ke bahut karib hai yah kavita...apne aspas aksar aisi ghatnayen dekhne ko milati hain.
अच्छा कवि वही होता है जो समाज के सच को उजाकर करे..मूक लोगों की आवाज बने. पालिश कविता इसी परम्परा को आगे बढाती है.
अच्छा कवि वही होता है जो समाज के सच को उजाकर करे..मूक लोगों की आवाज बने. पालिश कविता इसी परम्परा को आगे बढाती है.
एक बेहतरीन कविता.मार्मिक भाव.
सलामी ठोक आगे बढ़ जाता है
सामने खड़े ठेले से
कुछ पूड़ियाँ खरीद ली हैं उसने
उन्हीं गंदे हाथों से
खाने के कौर को
मुँह में डाल रहा है
मैं अपलक उसे निहार रहा हूँ।
....कविता के एक-एक शब्द दिल में उतरते जाते हैं.
बहुत सुन्दर कविता.
Nice Blog..Nice Poem..Congts.
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