30 अप्रैल 2009

कृष्ण कुमार यादव की कविता - पालिश

कृष्ण कुमार यादव का जीवन परिचय यहाँ देखें
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पालिश
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साहब पालिश करा लो
एकदम चमाचम कर दूँगा
देखता हूँ उसकी आँखों में
वहाँ मासूमियत नहीं, बेबसी है
करा लो न साहब
कुछ खाने को मिल जायेगा
सुबह ही पालिश किया जूता
उसकी तरफ बढ़ा देता हूँ
जूतों पर तेजी से
फिरने लगे हैं उसके हाथ
फिर कंधों से रूमाल उतार
जूतों को चमकाता है
हो गया साहब
उसकी खाली हथेली पर
पाँच का सिक्का रखता हूँ
सलामी ठोक आगे बढ़ जाता है
सामने खड़े ठेले से
कुछ पूड़ियाँ खरीद ली हैं उसने
उन्हीं गंदे हाथों से
खाने के कौर को
मुँह में डाल रहा है
मैं अपलक उसे निहार रहा हूँ।

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कृष्ण कुमार यादव
भारतीय डाक सेवा
वरिष्ठ डाक अधीक्षक,
कानपुर मण्डल, कानपुर-208001

e-mail - kkyadav.y@rediffmail.com

10 टिप्‍पणियां:

alka mishra ने कहा…

अच्छी कविता लिखी है आपने यह घटना मुझे अक्सर एल० सी ० में दिखाई देती है

Amit Kumar Yadav ने कहा…
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Amit Kumar Yadav ने कहा…

Jeewan ke bahut karib hai yah kavita...apne aspas aksar aisi ghatnayen dekhne ko milati hain.

Akanksha Yadav ने कहा…

अच्छा कवि वही होता है जो समाज के सच को उजाकर करे..मूक लोगों की आवाज बने. पालिश कविता इसी परम्परा को आगे बढाती है.

Akanksha Yadav ने कहा…

अच्छा कवि वही होता है जो समाज के सच को उजाकर करे..मूक लोगों की आवाज बने. पालिश कविता इसी परम्परा को आगे बढाती है.

बेनामी ने कहा…

एक बेहतरीन कविता.मार्मिक भाव.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

सलामी ठोक आगे बढ़ जाता है
सामने खड़े ठेले से
कुछ पूड़ियाँ खरीद ली हैं उसने
उन्हीं गंदे हाथों से
खाने के कौर को
मुँह में डाल रहा है
मैं अपलक उसे निहार रहा हूँ।
....कविता के एक-एक शब्द दिल में उतरते जाते हैं.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Bhanwar Singh ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता.

शरद कुमार ने कहा…

Nice Blog..Nice Poem..Congts.