09 जनवरी 2010

गीत: हे समय के देवता! --संजीव 'सलिल'

गीत

हे समय के देवता!

संजीव 'सलिल'

*

हे समय के देवता! गर दे सको वरदान दो तुम...

*

श्वास जब तक जल रही है,

आस जब तक पल रही है,

अमावस का चीरकर तम-

प्राण-बाती जल रही है.

तब तलक रवि-शशि सदृश हम

रौशनी दें तनिक जग को.

ठोकरों से पग न हारें-

करें ज्योतित नित्य मग को.

दे सको हारे मनुज को, विजय का अरमान दो तुम.

हे समय के देवता! गर दे सको वरदान दो तुम...

*

नयन में आँसू न आये,

हुलसकर हर कंठ गाये.

कंटकों से भरे पथ पर-

चरण पग धर भेंट आये.

समर्पण विश्वास निष्ठां

सिर उठाकर जी सके अब.

मनुज हँसकर गरल लेकर-

शम्भु-शिववत पी सकें अब.

दे सको हर अधर को मुस्कान दो, मधुगान दो तुम..

हे समय के देवता! गर दे सको वरदान दो तुम...

*

सत्य-शिव को पा सकें हम'

गीत सुन्दर गा सकें हम.

सत-चित-आनंद घन बन-

दर्द-दुःख पर छा सकें हम.

काल का कुछ भय न व्यापे,

अभय दो प्रभु!, सब वयों को.

प्रलय में भी जयी हों-

संकल्प दो हम मृण्मयों को.

दे सको पुरुषार्थ को परमार्थ की पहचान दो तुम.

हे समय के देवता! गर दे सको वरदान दो तुम...

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