अनबुझी प्यास रूह की है ग़ज़ल
खुश्क होठों की तिश्नगी है ग़ज़ल
उन दहकते से मंज़रो की क़सम
इक दहकती-सी जो कही है ग़ज़ल
नर्म अहसास मुझको देती है
धूप में चांदनी लगी है ग़ज़ल
इक इबादत से कम नहीं हर्गिज़
बंदगी सी मुझे लगी है ग़ज़ल
बोलता है हर एक लफ़्ज़ उसका
गुफ़्तगू यूँ भी कर रही है ग़ज़ल
मेहराबाँ इस क़दर हुई मुझपर
मेरी पहचान बन गई है ग़ज़ल
उसमें हिंदोस्ताँ की खु़शबू है
अपनी धरती से जब जुड़ी है ग़ज़ल
उसका श्रंगार क्या करूँ देवी
सादगी में भी सज रही है ग़ज़ल
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ग़ज़लः 2
मिलके बहतीं है यहाँ गंगो- जमन
हामिए -अम्नो-अमाँ मेरा वतन
वो चमन देता नहीं अपनी महक
एक भी ग़द्दार जिसमें हो सुमन
अब तो बंदूकें खिलौना बन गई
हो गया वीरान बचपन का चमन
दहशतें रक्साँ है रोज़ो-शब यहाँ
कब सुकूँ पाएंगे मेरे हमवतन
जान देते जो तिरंगे के लिये
उन शहीदों का तिरंगा है कफ़न
देश की ख़ातिर जो हो जाएं शहीद
ऐसे जाँ-बाज़ों को देवी का नमन
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देवी नागरानी
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