27 दिसंबर 2010

नीता पोरवाल की काव्य-रचना --- दिल करता है

कुछ देखना जो चाहूँ तो धुंधला जाती है आँखे
आज क्यूँ बहुत ..हाँ बहुत रोने को दिल करता है

कुछ लिखना जो चाहूँ तो अलफ़ाज़ नहीं मिलते
आसुओं को ही जुबान बनाने को दिल करता है

हर पल बढ़ती ये बेचैनी....ये दीवानगी.. ये पागलपन
आज किसी की आरजू में फना हो जाने को दिल करता है

वो न समझे थे ना समझेंगे खामोशियों की जुबान
शायद कभी समझेंगे ये झूठा गुमान रखने को दिल करता है

लम्हा -लम्हा , हर लम्हा साथ तो निभाया है इन आसुओं ने
तो अब इन आसुओं को ही हमसाज़ बनाने को दिल करता है

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नीता पोरवाल

5 टिप्‍पणियां:

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

इन आसुओं को ही हमसाज़ बनाने को दिल करता है

kitni pyari pankti...:)
bahut khub......

aryan ने कहा…

Bahut khub...
Bahut hi achi rachna hai...
Keep it up..

aryan ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
कई दफा यूँ ही... ने कहा…

aapke aansuon mein doob jane ko dil chahta hai......waah!

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

neeta aap behtareen rachnakaar hain !!