21 दिसंबर 2010

महेंद्रभटनागर की कविताएँ

महेंद्रभटनागर की कविताएँ

कला-साधना

हर हृदय में

स्नेह की दो बूँद ढल जाएँ

कला की साधना है इसलिए !

गीत गाओ

मोम में पाषाण बदलेगा,

तप्त मरुथल में

तरल रस ज्वार मचलेगा !

गीत गाओ

शांत झंझावात होगा,

रात का साया

सुनहरा प्रात होगा !

गीत गाओ

मृत्यु की सुनसान घाटी में

नया जीवन-विहंगम चहचहाएगा !

मूक रोदन भी चकित हो

ज्योत्स्ना-सा मुसकराएगा !

हर हृदय में

जगमगाए दीप

महके मधु-सुरिभ चंदन

कला की अर्चना है इसलिए !

गीत गाओ

स्वर्ग से सुंदर धरा होगी,

दूर मानव से जरा होगी,

देव होगा नर,

व नारी अप्सरा होगी !

गीत गाओ

त्रास्त जीवन में

सरस मधुमास आ जाए,

डाल पर, हर फूल पर

उल्लास छा जाए !

पुतलियों को

स्वप्न की सौगात आए !

गीत गाओ

विश्व-व्यापी तार पर झंकार कर !

प्रत्येक मानस डोल जाए

प्यार के अनमोल स्वर पर !

हर मनुज में

बोध हो सौन्दर्य का जाग्रत

कला की कामना है इसलिए

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कविता-प्रार्थना

आदमी को

आदमी से जोड़ने वाली,

क्रूर हिंसक भावनाओं की

उमड़ती आँधियों को

मोड़ने वाली,

उनके प्रखर

अंधे वेग को आवेग को

बढ़

तोड़ने वाली

सबल कविता

ऋचा है, / इबादत है !

उसके स्वर

मुक्त गूँजें आसमानों में,

उसके अर्थ ध्वनित हों

सहज निश्छल

मधुर रागों भरे

अन्तर-उफ़ानों में !

आदमी को

आदमी से प्यार हो,

सारा विश्व ही

उसका निजी परिवार हो !

हमारी यह

बहुमूल्य वैचारिक विरासत है !

महत्

इस मानसिकता से

रची कविता

ऋचा है, इबादत है !

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प्रतीक्षक

अभावों का मरुस्थल

लहलहा जाये,

नये भावों भरा जीवन

पुनः पाये,

प्रबल आवेगवाही

गीत गाने दो !

गहरे अँधेरे के शिखर

ढहते चले जाएँ,

उजाले की पताकाएँ

धरा के वक्ष पर

सर्वत्रा लहराएँ,

सजल संवेदना का दीप

हर उर में जलाने दो !

गीत गाने दो !

अनेकों संकटों से युक्त राहें

मुक्त होंगी,

हर तरफ़ से

वृत्त टूटेगा

कँटीले तार का

विद्युत भरे प्रतिरोधकों का,

प्राण-हर विस्तार का !

उत्कीर्ण ऊर्जस्वान

मानस-भूमि पर

विश्वास के अंकुर

जमाने दो !

गीत गाने दो !

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