07 जनवरी 2011

शालिनी कौशिक की कविता -- जैसे को तैसा

कविता -- जैसे को तैसा
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बहुत खुश होते हैं मुझसे जलने वाले
मेरा थोडा दुःख देखकर,
बहुत मित्र बनते हैं मुझसे जलने वाले
मेरा कोई शत्रु देखकर,
हैं नादाँ वे सब,हैं अंजान वे सब,
नहीं जानते अब तक कुछ भी यहाँ
किसी के भी सुख से ,किसी के भी दुःख से
किसी को भी मिलता है सुख-दुःख कहाँ,
क्या मैंने जो खोया,क्या उनको मिल पाया,
क्या मैंने जो पाया,क्या उनका छिन पाया,
यही सब वे सोचें,
यही सब वे जानें,
क्यों खुश हो रहे हैं वे मेरे बहाने,
क्यों ना इन क्षणों को कुछ करके बिताएँ
क्यों देते खुश होकर मुझे तुम दुआएँ
नहीं चाहती मैं अब कुछ भी तुमसे,
भले मनाओ खुशियाँ भले करलो जलसे,
तुम सबकी असलियत जानी मैं जबसे ,
है दिल में तो चाहत मेरी यही तबसे,
जैसा तुमने किया है वैसा ही तुम सब पाओ,
इसलिए करती जाओ ऐसा ताकि ऐसा फल भी खाओ.

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Shalini Kaushik advocate

3 टिप्‍पणियां:

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

जैसा तुमने किया है वैसा ही तुम सब पाओ,
इसलिए करती जाओ ऐसा ताकि ऐसा फल भी खाओ.

jee bahut achchha, ye to bade bujurgo ka kahna hai, jaise ko taisa...:)

शिखा कौशिक ने कहा…

bahut badya lagi .

बेनामी ने कहा…

what a wonderful shairi