01 मार्च 2009

डॉ0 ब्रजेश कुमार की कविता

लो पुनः मधुमास आया।
डॉ० ब्रजेश कुमार
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लो पुनः मधुमास आया।
व्यस्त हो सबने संभाली,
रंग-रंगों की पिटारी,
कुहुक फ़िर अनजान डोली,
चेतना मन की बिसारी।
विकल प्राणों में विहंसती, मधुर, पुलकित प्यास लाया।
लो पुनः मधुमास आया॥

खोल कर घूंघट नवेली,
कली बरबस मुस्कुराई,
आह!कितना है मनोहर,
सोचती वह कसमसाई।
तृषित नयनों में झलकता, स्वप्न सौ-सौ बार छाया।
लो पुनः मधुमास आया॥

सांवली, प्यारी, सलोनी,
कामिनी फ़िर खिलखिलाई,
खिल उठी सरसों सुनहली,
पुलक तन-मन में समाई।
हाय! यह पापी पवन फ़िर, विकल मन में आ समाया।
लो पुनः मधुमास आया॥

कहीं धरती लहलहाती,
कहीं बंजर में न पाती,
कहीं रस राग का मेला,
कहीं खाली पेट छाती।
हास और परिहास का रंग, क्यों विधाता को न भाया।
लो पुनः मधुमास आया॥

1 टिप्पणी:

"अर्श" ने कहा…

is blog ke liye aapko tatha itani khusurat rachna ke liye brajesh ji ko dhero badhai ....



arsh