01 जुलाई 2009
डॉ0 अनिल चड्डा की कविता - मेरी कविता का दर्द!
मन ने
कुछ शब्द
बुदबुदाये
कविता बन गये
भावों की
सरिता बन गये
शब्दों में
मन की व्यथा
उकेर कर
कहीं से कुछ
कहीं से कुछ
ले लेता हूँ
और सभी कुछ
शब्दों को
दे देता हूँ
मैं ही क्यों झेलुँ
सारी व्यथा
शब्दों के द्वारा
कुछ तुम्हें भी
दे देता हूँ
भार उठाते-उठाते
कमजोर पड़ चुके
अपने काँधों का
कुछ भार
तुम्हें भी दे देता हूँ
तुम भी तो
कुछ भार सहो
मेरे शब्दों की
मार सहो
फिर अगर
कह सको तो कहो
मैंने क्या पाया
क्या खोया है
तुमने क्या पाया
क्या खोया है
मेरी कविता ने
जो दर्द बोया है
उसे कम से कम
तुम्हारी आँखों ने
नमी में तो
पिरोया है !
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डा0अनिल चड्डा
http://anilchadah.blogspot.com
http://anubhutiyan.blogspot.com
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डॉ० अनिल चड्डा का परिचय यहाँ देखें
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