डॉ0 अनिल चड्डा की ग़ज़ल - किसी को फुर्सत कहाँ है सोचने की
किसी को फुर्सत कहाँ है सोचने की,
अपने ज़मीर को कचोटने की !
हम भी शामिल हो गये नोचने में,
ज़रूरत क्या हमें है रोकने की !
बुराईयों से मुँह चुराना ठीक नहीं,
अच्छी आदत नहीं है टोकने की !
आने दे लक्ष्मी जिस राह भी आये,
पुरानी बातें हो गईं उसे मोड़ने की !
रिश्ते यूँ भी तो मतलब के ही हैं,
नौबत आती कहाँ है तोड़ने की !
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डा0अनिल चड्डा
http://anilchadah.blogspot.com
http://anubhutiyan.blogspot.com डॉ० अनिल चड्डा का परिचय यहाँ देखें
1 टिप्पणी:
रिश्ते यूँ भी तो मतलब के ही हैं,
नौबत आती कहाँ है तोड़ने की !
kitna khubsurat or sach kaha hein !!
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