02 जुलाई 2009

डॉ0 अनिल चड्डा की ग़ज़ल - किसी को फुर्सत कहाँ है सोचने की



किसी को फुर्सत कहाँ है सोचने की,
अपने ज़मीर को कचोटने की !

हम भी शामिल हो गये नोचने में,
ज़रूरत क्या हमें है रोकने की !

बुराईयों से मुँह चुराना ठीक नहीं,
अच्छी आदत नहीं है टोकने की !

आने दे लक्ष्मी जिस राह भी आये,
पुरानी बातें हो गईं उसे मोड़ने की !

रिश्ते यूँ भी तो मतलब के ही हैं,
नौबत आती कहाँ है तोड़ने की !

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डा0अनिल चड्डा
http://anilchadah.blogspot.com
http://anubhutiyan.blogspot.com


डॉ० अनिल चड्डा का परिचय यहाँ देखें

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

रिश्ते यूँ भी तो मतलब के ही हैं,
नौबत आती कहाँ है तोड़ने की !

kitna khubsurat or sach kaha hein !!