रोइए जार-जार क्या....कीजिये हाय-हाय क्यूँ !!!
रोइए जार-जार क्या....कीजिये हाय-हाय क्यूँ !!
बड़ा शोर सुन रहा हूँ इन दिनों स्पेक्ट्रम वगैरह-वगैरह का.....मन ही नहीं करता कि कुछ लिखूं....हमारा लिखना कुछ यूँ है कि हमारे जैसे ना जाने लिखते-चीखते-चिल्लाते रह जाते हैं....और घोटाले करने वाले घोटाले कर-कर के नहीं अघाते हैं....बड़े-बड़े अफसर फाईलों पर अपनी चेतावनी की कलम चलाते हैं....मगर किसी साले का कुछ नहीं बिगाड़ पाते हैं....कोई अफसर अंगुली उठाता है तो अपने महकमे से बाहर कर दिया जाता है....और तो और कोई प्रधानमन्त्री नाम का कोई शख्स भी जवाब माँगता है तो उलटे हाथ खरी-खोटी सुनकर हाथ मलता रहा जाता जाता है....आप देखिये कितना विकेंद्रीकृत हो गया सब कुछ.....जब पी.एम.नुमा जीव भी किसी अदने से मंत्री की फटकार सुनकर चुप रह जाता है.....और बरसों अपनी जीभ सीए रहता है कुछ इस तरह....जैसे कि मूंह में जुबां ही ना हो....और फिर एक दिन जुबां खोलता भी है तो इस तरह....जैसे कोई भीगी बिल्ली हो.....दोस्तों प्रधानमन्त्री नाम के इस शब्द का पराभव हो चुका है भारत के इस शासन काल में....इतना विगलित हो जाने से अच्छा किसी भी प्रधानमन्त्री के लिए आत्महत्या कर लेना होता....मगर इस प्रकार की हरकतें करके उन्होंने ना सिर्फ इस पद का बल्कि अपनी खुद की निजी इज्जत का,समूचे देश के सम्मान का.....और देश की समूची जनता के सर को शर्म से नीचा कर दिया है.....जनता कुछ समय बाद सब कुछ भूलभाल कर बेशक उन्हें कभी माफ़ भी कर दे....मगर इतिहास उन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा....!!
दोस्तों कभी-कभी आप निजी तौर पर गद्दार नहीं होते हुए भी गद्दार से भी ज्यादा हो जाते हैं...और इस गद्दारी को भले ही परिभाषित नहीं किया जा सके मगर....मगर इस कालिमा के छींटे हमेशा-हमेशा के लिए आपके दामन पर छा जाते हैं....आप बेशक खुद को सबूतों के अभाव में निष्कलंक बताते रहें....मगर मुर्ख से मुर्ख जनता भी जानती है कि दरअसल हो क्या रहा है....और जो हो रहा है....उससे जनता की आँखे भले ही कुछ देर से खुल रही हैं....मगर जब पूरी तरह खुल जायेंगी तो वह सबको दौड़ा-दौड़ा कर मारेगी.....बेईमानों को भी और इमानदारी का नकाब पहने हुए गद्दारों को भी....और यह सच होकर ही रहेगा....!!!!
7 टिप्पणियां:
बिल्कुल होकर रहेगा।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (9/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
आप सही फ़रमाते हैं?
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बापू तेरे चेलों के............
-डॉ० डंडा लखनवी
थू-थू, थू-थू, थू-थू, थू।
जननायक हैं या डाकू?
धोती और लंगोटी पे-
क्यों तुम जीते थे बापू?
बापू तेरे चेलों के-
चालचलन में क्यों बदबू?
तुमने सत्याग्रह रक्खा-
ये रखते कट्टे- चाकू?
कहने को जनसेवक ये-
किन्तु वास्तव में पेटू?
खु़द मनमाना वेतन लें-
जनता को देते आँसू॥
था वो अनाज भूखों का-
वो बोले कि सड़ जा तू॥
आप सही फ़रमाते हैं?
भूखी जनता चिल्लाती-
ये पीते, खाते काजू॥
नेतागीरी धंधा क्या-
उसमें क्या रक्खे लड्डू?
युवा हाथ को काम नहीं-
मंहगाई है बेकाबू॥
कहाँ मीडिया सोयी है-
कहाँ गया उसका जादू?
moorkh janta kab jagegi ?shayad jab neta sab kuchh apni gathhri me bharker bhag jayege .
जब तक अपने देश में भ्रष्टाचार को देश द्रोह की संज्ञा नहीं मिलाती इसके मिटने के आसार नगण्य हैं !
१.५ अरब की आबादी भ्रष्टाचार की अभ्यस्त है !
दिन-रात उसी से जन-जीवन त्रस्त होते हुए भी मस्त है !!
बोधिसत्व कस्तूरिया मोब:9412443093
हां सही तो है. असल में हम यदि कोई गद्दारी देश या समाज या परिवार के साथ कर रहे होते हैं, तो सबसे पहले , खुद के साथ गद्दारी करते हैं.
राजीव जी....
ऐसा लगने लगा है.....हम अंधों के शहर में आइने बेच रहे हैं. ईमान तो सिर्फ यहाँ बे-ईमान रखते हैं.
बधाई.
good post!
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