17 मार्च 2009

डा0 लखन लाल पाल की लघुकथा - जीन्स

गाँव के अथाई मुहल्ला में शोर बढ़त जा रओ तो। मुहल्ला में एकई चरचा हती। या चरचा कछू खट्टी....कछू चटपटापन लयें ती। बातन में सुगबुगाहट....लुगाइयन के बीच कानाफूसी...मुखिया लम्बरदारन की चढ़ी त्योरियाँ माहौल खें रोचक बना रईं तीं। लम्बरदारन के तेबर कछू लोगन खें पहुँचाउत ते, या यूँ कहें कि लम्बरदार कौ रौबीलौ अंदाज उनकी मान्यतन (मान्यताओं) कौ पोसन कर रओ तो। यौ अन्दाज ऊ लोगन द्वारा पूरी तरां से समर्थित हतो। फिर दूसरे लोगन से परम्पराओं और मान्यताओं के हनन खें ई लोग कैसें बरदाश्त कर सकत ते। इन्हईं की दया पै जियन बाले लोग इन्हईं पै चड्डी गाँठें, यौ उन्हें कैसे स्वीकार हो जाती। जर्जर दिवाल की रक्षा कौ भार इन्हईं के मजबूत कंधन पै जो है। लोग अपनौ काम-धाम छोड़खें लम्बरदारन की बातन कौ आनन्द लेन लगे। लम्बरदार बड़बड़ानों-‘‘ई ससुरी बदजात ने संसकिरती मिटा दई....गाँव मुहल्ला बरबाद कर रई...लाज खा गई...शरम काहे की...या नीच धनकुरिया मोरे दरबज्जे के सामें सें जीन्स पहर खें निकरन लगी। मौड़ी जीन्स पहरहैं, ता यौ धरम बचहै कि रसातल में जैहै? खाबे खों दाने नहिंयाँ जीन्स पहर खें कूल्हे मटकाउट फिरत।’’
लोगन के कानन में शहद सी घुर गई। लम्बरदार कौ वफादार नौकर उतईं बैठो ओखे पाँउन खें दबा रओ तो और ओखी बातन के रस कौ पान करत जा रओ तो। आनन्द की अधिकता में ऊ अपनी मुंडी हिला रओ तो। लम्बरदार कौ उत्साह दुगुनो....तिगुनो....चैगुनो बढ़त जा रओ तो। नौकर कौ आनन्द ऊ गुणात्मक हो गओ। मुखरित वातावरन में लाली तिर गई। नौकर ने ऊ लालिमा खें आत्मसात करखें चिरौरी करी-‘‘मालिक! या बात एक देर और कहाव....ई धनकुरिया खें अपनी सोनाली बिटिया सें अच्छौ जीन्स घोरई फबत?... अपनी सोनाली बिटिया जीन्स पहर खें निकल जात...ता लगत काऊ लम्बरदार की बिटिया जा रई है।’’
लम्बरदार ने नौकर खें लाल आंखिन से देखो, नौकर सकपकानों। ओने महसूस करो, स्यात ओपै कौन्हऊ बड़ी भूल हो गई।

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1 टिप्पणी:

SUNIL KUMAR SONU ने कहा…

baut sundar ji karta he abhi-abhi kalam pakad lun aut hu-bahu iski nakal kavita me kar dun.
DHANYBAD