23 मार्च 2009

सीताराम गुप्ता की लघुकथा - पुनरावर्तन

लोग रिहायशी इलाक़े में शराब की दुकान के विरुद्ध मरने-मारने पर उतारू हो गए। प्रशासन के ख़िलाफ नारेबाज़ी शुरू हुई। लोगों ने रास्ते जाम कर दिए और दुकान के सामने धरने पर बैठ गए। कई दिनों तक ये सब चलता रहा। लोगों की दृढ़ता के सामने प्रशासन को झुकना पड़ा। रिहायशी इलाक़े से शराब की दुकान हटा दी गई और उसे रिहायशी इलाक़े से दूर एक ऐसी मार्केट में खोल दिया गया जहाँ बरसों से दुकानें ख़ाली पड़ी हुई थीं। पूरी मार्केट में इक्का-दुक्का दुकानें ही चल रही थीं बाक़ी सब बंद पड़ी थीं। आसपास के इलाक़ों में बने फ्लैट और मकान भी लगभग ख़ाली पड़े थे क्योंकि यहाँ रहने के लिए न तो मूलभूत सुविधाएँ ही उपलब्ध थीं और न कंस्ट्रक्शन की क्वालिटी ही अच्छी थी।

सारे दिन धूल उड़ती थी मार्केट और पूरे इलाक़े में। चारों तरफ गंदगी के ढेर लगे थे और पूरे इलाक़े में बदबू का साम्राज्य व्याप्त था। शराब की दुकान खुलने से दिन में तो कोई ख़ास फर्क़ नहीं पड़ा लेकिन शाम के समय मार्केट की रौनक़ बढ़ने लगी। इलाक़े में भीड़-भाड़ तो थी नहीं इसलिए गलियों में और सड़कों पर गाड़ियाँ खड़ी करने में कोई दिक्क़त नहीं होती थी। जहाँ मर्ज़ी गाड़ी खड़ी करो, सामान लाओ और वापस गाड़ी में आकर आराम से भोग लगाओ।

इस सुविधा के कारण दूर-दूर से लोग यहाँ आने लगे। मार्केट में तथा आसपास के मकानों व फ्लैटों के बाहर अस्थायी दुकानें लगने लगीं। किसी बंद दुकान के शटर के बाहर नमकीन के पैकेटों की लड़ियाँ लटकी हुई हैं तो कहीं कोल्ड-ड्रिंक, सोडा और मिनरल-वाटर की बोतलें सजी हैं। एक कोने में अपेक्षाकृत थोड़ी खुली जगह पर एक चिकन कार्नर चालू हो गया। शराब की बिक्री बढ़ने के साथ-साथ दुकानों की तादाद में भी इज़ाफा होने लगा और शराब की करामात से काम-धंधा भी बढ़ने लगा। जब ये बात बंद दुकानों के मालिकों के कानों में पड़ी तो वे भी हालात का जायज़ा लेने पहुँच गए। काम-धंधा ठीक-ठाक देखकर कुछ लोगों ने बरसों से बंद पड़ी अपनी दुकानों के शटर उठा दिए। जो लोग किसी कारण से स्वयं दुकानें चलाने में असमर्थ थे उन्होंने अपनी दुकानें किराए पर चढ़ा दीं।

धीरे-धीरे न केवल मार्केट की सारी दुकानें चालू हो गईं बल्कि आस-पास के फ्लैटों में भी ढेर सारी दुकानें खुल गईं। जो दुकानदार दूर से आते थे उन्होंने भी आस-पास ही फ्लैट या मकान ख़रीद लिए। मकानों और दुकानों की क़ीमतें आसमान छूने लगीं। इलाक़े की रौनक़ बढ़ने लगी। नागरिक सुविधाओं में भी कुछ सुधार होने से लोग यहाँ आकर बसने लगे। धीरे-धीरे पूरा इलाक़ा एक बेहतरीन रिहायशी इलाके में तब्दील हो गया। शराब की दुकान और मार्केट अब इस रिहायशी इलाक़े के बिलकुल बीच में हो गई थी। शराब की दुकान और रिहायशी इलाक़े के बीच में शरीफ शहरियों के माथों पर बल पड़ने लगे। शराब की दुकान हटाने के लिए लोग एक बार फिर प्रशासन के ख़िलाफ प्रदर्शन व नारेबाज़ी कर रहे थे और शराब की दुकान के सामने धरने पर बैठ गए थे। प्रशासन एक बार फिर उचित स्थान की तलाश में जुट गया था।
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