07 मई 2009

डॉ0 वीरेन्द्र सिंह यादव की पुस्तक - पर्यावरण : वर्तमान और भविष्य (7)

लेखक - डॉ० वीरेन्द्र सिंह यादव का परिचय यहाँ देखें
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अध्याय 7 - ध्वनि प्रदूषण का अर्थ, स्रोत एवं इसके नियन्त्रण के उपाय
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प्रकृति से मानव को कुछ चीजें उपहार में मिली है, झरनों की कल-कल की आवाज, चिड़ियों की चहचहाहट कोयल की मधुर कूक जहाँ हृदय को शांति प्रदान करती है। वहीं संगीत की सुमधुर स्वर साधना जहाँ मानव में अनेक असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाने के साथ उसमें उमंग, उत्साह तथा कार्यक्षमता बढ़ाने के साथ ही आनन्द की अखण्ड बढ़ोत्तरी करते हैं। वास्तव में यदि देखा जाये तो ध्वनि का रिश्ता मानव की प्रकृति में प्रारम्भ से ही रहा है। पशु-पक्षी, कीट-पतंगें, पेड़-पौधे, वर्षा, नदियां, झरने बादल आदि सब किसी न किसी प्रकार की आवाज से जुड़े होते हैं। हमारी दिनचर्या के साथ आज इन आवाजों का सम्बंध घनिष्ट रूप से जुड़ गया है जैसे एलार्म की आवाज जानवरों की आवाज, सड़कों पर यातायात बाइक, कार, ट्रक एवं अन्य वाहनों का आना जाना। और इसके साथ घर पर मनोरंजन के साधन (रेडियो, टी.वी., टेपरिकार्डर, डेस्क, कम्प्यूटर) आदि हैं। यही आवाजें जब सामान्य आवाजों से तेज हो जाती हैं तो वह हमें चुभने लगती हैं अर्थात् ‘अवांछित ध्वनि को शोर कहा जाता है। संजय तिवारी के अनुसार ‘मनुष्य अथवा कोई भी प्राणी जब भी कोई कार्य करता है अथवा किसी प्रकार की कोई अभिव्यक्ति करता है तो उससे वायुमण्डल पर दबाव पड़ता है और वायु तरंगे उत्पन्न हो जाती हैं जिससे आवाज आती है यही आवाज ध्वनि कहलाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो ‘ध्वनि प्रदूषण मानव के लिए असहनीयता एवं अनाराम की उस दशा को व्यक्त करता है जो विभिन्न स्रोतों से निकले शोर द्वारा उत्पन्न होती हैं।’ ध्वनि अंग्रेजी भाषा के NOISE एवं लैटिन भाषा के Nau Sea से बना है जिसका अर्थ होता है कम्पन करना। अर्थात् ध्वनि कम्पन से ही उत्पन्न होती है। यही ध्वनि जब अपनी उच्च सघनता के कारण शोरगुल में परिवर्तित हो जाती है। तो वह मानव में चिड़चिड़ापन, बोलने में व्यवधान, सुनने में हानिकारक तथा कार्य कुशलता में ह्स उत्पन्न करती है। यही ध्वनि प्रदूषण कहलाता है - डा. वी. राय के शब्दों में कहें तो अनिच्छापूर्ण ध्वनि जो मानवीय सुविधा तथा गतिशीलता में हस्तक्षेप करती है अथवा प्रभावित करती है, ध्वनि प्रदूषण है।’ रोथम हैरी के अनुसार किसी भी स्त्रोत से निकलने वाली ध्वनि प्रदूषक बन जाती है जब वह असहाय हो जाती है। वहीं साइमन्स का मानना है कि ‘बिना मूल्य की अथवा अनुपयोगी ध्वनि, ध्वनि प्रदूषण है।’
वास्तव में ध्वनि एक सतत चलने वाली सामान्य प्रक्रिया का प्रतिफलन है। ध्वनि कम्पनों से उत्पन्न होती है और यही कम्पित वायु हमारे कर्णेन्द्रियों से होती हुई जब मस्तिष्क तक पहुँचती है तब हमें इसका एहसास होता है। कम्पनांक द्वारा यह ध्वनि सेकेण्डों में मापी जाती है। साधारण रूप में मनुष्य के कान 20 से 20,000 कम्पन प्रति सेकेण्ड तक की ध्वनि को स्पष्ट रूप से सुन सकते हैं। इस तरह से 20 से 20,000 कम्पन प्रति सेकेण्ड तक की ध्वनि श्रव्य ध्वनि कहलाती है। उम्र के साथ-साथ भव्यता की सीमा घटती-बढ़ती रहती है। वैज्ञानिक अनुसंधानों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है। बीस वर्ष की आयु वाले युवक के लिए यह सीमा 20,000/सेकेण्ड है। वहीं पैंतीस वर्ष की आयु में 16000/सेकेण्ड तथा 47 वर्ष की आयु में 13,000/सेकेण्ड ही रह जाती है। जो ध्वनि बीस हजार प्रति सेकेण्ड से अधिक आवृत्ति वाली होती है वह हमें सुनाई नहीं देती है। पराश्रव्य ध्वनि कहलाती है। मनुष्य के अलावा और कई प्राणी (जीवधारी) हैं जो इसे सुन सकते है - जैसे बिल्ली, कुत्ता, चमगादड़ आदि।
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ध्वनि प्रदूषण के स्रोत
प्राकृतिक स्रोत
मानव द्वारा उत्पादित
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प्राकृतिक स्रोत
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बादल की गरज
भूकम्प
बिजली की गड़गड़ाहट
उल्कापात
ज्वालामुखी का फटना
भूस्खलन भवनों का गिरना
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मानव द्वारा उत्पादित
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परिवहन द्वारा
कारखाने और उद्योग
मशीन साइरन, जनरेटर्स
मनोरंजन के साधन
घरेलू उपकरण
सैनिक अभ्यास की वस्तुएँ
पूजा स्थल के उपकरण
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वर्तमान में औद्योगीकरण एवं शहरी संस्कृति के कारण शोर (ध्वनि) की समस्या दावानल आग की तरह अपना नित्यप्रति विस्तार करती चली जा रही है। इस ध्वनि से उत्पन्न होने वाले कम्पनों ने मानव की श्रवण शक्ति के अलावा अन्य मानसिक तथा शारीरिक विकार उत्पन्न कर दिए हैं। वैज्ञानिक निष्कर्षों से ऐसे परिणाम सामने आये हैं कि अधिक ध्वनि से हृदय एवं मस्तिष्क कमजोर हो जाते हैं इसकी अधिकता से व्यक्ति बहरा तथा गूंगेपन का शिकार भी हो जाता है। यही नहीं अधिक समय तक इसके प्रभाव में रहने पर व्यक्ति का रक्तताप, पाचन तंत्र कमजोर होने के साथ उसमें अनेक तरह की बीमारियाँ मोटापा, गंजापन, स्मृति क्षमता का हृस कार्य क्षमता में कमी मानसिक अस्थिरता कुण्ठा, तनाव, भय, पागलपन, आदि रोग हो जाते हैं। वहीं दूसरी ओर अधिक ध्वनि के कारण हमारी वनस्पतियाँ, इमारतों और प्राकृतिक सम्पदाओं पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिक खोजों के अनुसार यदि व्यक्ति 85 डेसीबल से अधिक ध्वनि में लगातार रहता है तो उसके बहरा होने का खतरा बढ़ जाता है। वहीं 120 डेसीबल से अधिक ध्वनि से व्यक्ति को चक्कर आ सकते हैं और 180 डेसीबल से अधिक की ध्वनि में अधिक समय तक रहने पर उसकी मृत्यु हो सकती है।
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प्रमुख ध्वनि स्रोत, स्तर एवं मानवीय अनुक्रिया
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190 से अधिक - ज्वालामुखी विस्फोट - मृत्यु तक हो सकती है
180 से अधिक - राकेट इंजन - असहनीय -
170 से अधिक - बम्बार्डिंग - अति पीड़ादायक
160 से अधिक - बंदूक का दागना - कानों के पर्दे फट जाते हैं
150 से अधिक - जेट प्लेन का उतरना - कानों के पर्दे के लिए घातक
140 से अधिक - जेट इंजन, अंतरिक्ष यान - शरीर में थकान, पीड़ाजनक
130 से अधिक - उड़ान भरता जेट- कानों में दर्द का प्रारम्भ
120 तक - हवाई जहाज का जेट/गाड़ियों के हार्न, लाउड स्पीकर
110 तक - फैक्ट्रियों का बायलर/स्टीम रेल इंजन - थरथराहट/घबराहट
100 तक - बस स्टैंड, हवाई अड्डा, रेलवे स्टेशन, व्यस्त चैराहा, औद्योगिक क्षेत्र - चिल्लाने पर भी अस्पष्ट सुनाई देना
90 तक - भारी ट्रक, जोर से चिल्लाने की ध्वनि, दीपावली के पटाखे, मोटर साइकिल/बस स्टैण्ड - प्रबल शोर से श्रवणता घटना, अत्याधिक झुंझलाहट एवं नाराजगीकारक
80 तक - राष्ट्रीय मार्ग का यातायात/डीजल ट्रक, बस/प्रिटिंग प्रेस/नगर के व्यस्त चैराहे और कार्यालय - खिजलाहट, असुविधा उत्पन्न करती है
70 तक - स्वचालित वाहन (15 मी. दूरी तक) या टेलीविजन - टेलीफोन करने में बाधक
60 - 65 - कार्यालय में एयरकण्डीशनर (6 मी. दूर) कार, काफी हाउस, हल्का यातायात व्यस्त घनी बस्तियाँ - शोर, प्रदूषण मानवीय सहनीय क्षमता से कुछ अधिक
50 - 55 - वार्तालाप या टाइपराइटर/मकान में एयर कंडीशनर, सामान्य कार्यालय - शांति, सुविधाजनक
40 - 45 - सामान्य बातचीत/उपनगरीय क्षेत्र में शयन कक्ष, एयर कंडीशनर, रेडियो संगीत - मधुर, मानकों के अनुसार
30 - 35 - शांत गली का मकान, अति धीमा रेडियो, घड़ी की टिक-टिक, औसत घर, धीमी बातचीत - मनुष्य के लिये आदर्श
20 -15 - फुसफुसाहट (कानफूसी) वृक्षों से गुजरती हवा - अति शांत
10 -15 - श्वसन/पत्तियों की खड़खड़ - सुनने की क्षमता में वृद्धि
0 -5 - हृदय की धड़कन या गर्भस्थ शिशु की क्रियायें - छाती एवं पेट पर कान लगाने पर ही प्रयत्न करने पर ही सुनी जा सकती है

(स्रोत – डा0 एन. एम. अवस्थी - पर्यावरण एक अध्ययन, पृ. 243-244)
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ध्वनि प्रदूषण नियन्त्रण के उपाय
पर्यावरण के सामने आज ध्वनि प्रदूषण एक गम्भीर चुनौती बनी हुयी है। यह एक ऐसा मीठा जहर है जिसका प्रभाव धीरे-धीरे मानव शरीर में घुलता जा रहा है और इसके असर से मानव धीमें-धीमें मृत्यु के आगोश में पहुँचता चला जा रहा है। दैनिक जीवन में जिन उपकरणों के सहारे दिनचर्या चलती एवं समाप्त होती है उनमें पूरी तरह कटौती तो सम्भव नहीं है परन्तु इस पर कुछ हद तक नियंत्रण पाने का प्रयास तो मानव को अनवरत करते ही रहना होगा। समय-समय पर सरकार के द्वारा ध्वनि प्रदूषण से सम्बन्धित नियम बनाये गये परन्तु वे काफी नहीं हैं। ध्वनि प्रदूषण मानव की एक शाश्वत समस्या है अतः इस पर गम्भीरतापूर्वक मनन करते हुये इसके नियंत्रण के लिये निम्न व्यापक उपाय किये जा सकते हैं-
1. शोर का ध्वनि स्रोत पर नियंत्रण आवश्यक किया जाना चाहिये।
2. जिन उपकरणों एवं यन्त्रों द्वारा शोर फैलता हो उन्हें नयी तकनीकी विधि या सड़कों पर तकनीक का प्रयोग करके शोर रोकना होगा।
3. शोर की एक निश्चित (अभिशंषित) सीमा का पालन करवाया जाना सुनिश्चित किया जाये।
4. ध्वनि प्रदूषण के प्रति धार्मिक गुरूओं एवं शिक्षकों की मदद से प्रचार प्रसार करवाया जाना चाहिये।
5. हरित पट्टी का निर्माण ध्वनि स्रोतों के आसपास कराया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिये।
6. कठोर शासकीय नियम बनाये जायें एवं उन्हें कड़ाई के साथ पालन करवाया जाये।
7. सरकार द्वारा हर उत्सव त्योहार या व्यक्तिगत पार्टी पर ध्वनि की सीमा सुनिश्चित एवं अभिशंषित की जानी चाहिये और जिसके तहत कोई भी अपना कार्य सार्वजनिक स्थानों पर कर सकने का अधिकार रखे।

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सम्पर्कः
वरिष्ठ प्रवक्ता: हिन्दी विभाग
दयानन्द वैदिक स्नातकोत्तर महाविद्यालय
उरई-जालौन (उ0प्र0)-285001

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