डॉ0 अनिल चड्डा की कविता - "कौन सुने"
कौन सुने ह्रदय की बात !
सूना दिन, है काली रात !!
क्षोम भरी पाती लिखता हूँ,
बार-बार फिर खुद पढ़ता हूँ,
यूँ ही हो जाती प्रभात !
अधरों पर मुस्कान नहीं है,
अँखियों में उल्लास नहीं है,
कैसी तुमने दी सौगात !
घन-घन-घन घनघोर घटा है,
पर मेरा मन सबसे कटा है,
बेकाबू हो गये हालात !
नभ के तारे बने सखा हैं,
उन्हें ही मेरा हाल दिखा है,
बाकी सबने की है घात !
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डा0 अनिल चड्डा
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