19 मई 2009

डॉ0 वीरेन्द्र सिंह यादव की पर्यावरण सम्बन्धी पुस्तक का आलेख - ताप प्रदूषण

लेखक - डॉ० वीरेन्द्र सिंह यादव का परिचय यहाँ देखें
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अध्याय 8 - ताप प्रदूषण अथवा रेडियोधर्मी प्रदूषण का अर्थ एवं रोकने के उपाय
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ताप प्रदूषण अत्यधिक गर्मी उत्पन्न होने से पैदा होता है अर्थात जब वातावरण की सामान्य ताप अवस्था में बढ़ोत्तरी होती है तब इसे तापीय प्रदूषण कहा जाता है। जीव शास्त्रियों की मानें तो 420 सेल्सियस से उच्च तापमान पर मनुष्य की आन्तरिक क्रियायें (Metabolism Rate) शिथिल होने लगती हैं। ऐसी परिस्थितियों में उनको नियन्त्रित करने के लिये शरीर में से हीट स्ट्रोक प्रोट्रीन (Heat Stroke Protein) में तेजी से वृद्धि हो जाती है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसी अवस्था में पशु, पादप तो उच्च तापमान से प्रभावित होते ही हैं मिट्टी भी ताप की अधिकता से अपनी मूल प्रकृति को खो देती है और वह अनुउपजाऊ हो जाती है।
ताप प्रदूषण सामान्यतः दो इकाइयों में बाँटा जा सकता है

(1) औद्योगिक इकाइयों विशेषकर ताप बिजलीघरों द्वारा नदियों में छोड़े जाने वाले गर्म पानी के कारण-जिसमें बहुत अधिक ताप वाले पानी को निकाला जाता है और उसे उसी स्थान या स्रोत में मिला दिया जाता है जहाँ विद्युत गृह के संयत्र को चलाने और उसे ठंडा करने के लिये जल लिया जाता है यह प्रक्रिया काफी खतरनाक होती है

(2) औद्योगिक इकाइयों द्वारा भाप व गर्म गैसें वायुमंडल में छोड़ने के कारण-जिसकी चिमनी से निकली राख अधिक ताप के कारण भी हानिकारक है क्योंकि जिस स्थान पर यह गिरती है वहाँ के पेड़ पौधे और फसलें नष्ट हो जाते हैं। ज्वालामुखी एवं परमाणु तथा अनुवर्ती की वजह से भी तापीय प्रदूषण उत्पन्न होता है जो वातावरण के साथ-साथ मानव एवं जीवधारियों के लिये अनेक तरह की कठिनाइयों को जन्म देता है।

भौतिकता एवं उत्तरोत्तर आगे बढ़ने की प्रक्रिया में प्रकृति पर विजय पाने के साथ ही जीवन को सुखी सम्पन्न बनाने के मानवीय प्रयासों हेतु मानव ने पृथ्वी को अणु, परमाणु, हाइड्रोजन के परीक्षणों, नाभिकीय संस्थानों के रेडियोधर्मी अवशिष्ट पदार्थों, रेडियो आइसोटोपों आदि के माध्यम से मानवता को विनाश के कगार पर खड़ा कर दिया है क्योंकि ये रेडियो एक्टिव पदार्थ जब प्रयोग किये जाते हैं तो तात्कालिक हानियाँ तो होती हैं इसके अलावा भी दूरगामी परिणाम भी इससे होते हैं। मनुष्यों में इससे अनेक तरह के घातक रोगों-अपंगता, बांझपन, त्वचा रोग, कैंसर आदि हो जाते हैं। हिरोशिमा और नागासाकी में हुये परमाणु बम विस्फोट इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। तापीय प्रदूषण जीवधारियों एवं वनस्पति और भूमि की उर्वरा शक्ति को भी नष्ट कर देता है।

विभिन्न देशों में परमाणु रियेक्टरों की संख्या एवं विद्युत उत्पादन
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देश-----रियेक्टरों की संख्या----कुल शक्ति में परमाणु शक्ति का प्रतिशत

सं0राज्य अमेरिका---119----13.5
सोवियत संघ----85----9.0
फ्रांस----64----58.70
बिट्रेन----42----17.50
जापान----41----22.90
पं. जर्मनी----26----23.20
कनाडा----23----11.60
स्वीडन----12----40.60
भारत----10----2.6
अर्जेण्टाइना----3----10.0
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विश्व----525----13.0


स्रोत – डा0 आर0 एस0 चौरसिया-इनवायरमेंट एजूकेशन, पृ. 227

तापीय प्रदूषण रोकने के उपाय
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कुछ तापीय प्रदूषक प्रकृति प्रदत्त होते हैं उन्हें रोकना मानव के वश की बात नहीं (ज्वालामुखी) है फिर भी उससे सचेत तो हुआ जा सकता है तापीय प्रदूषण को रोकने हेतु निम्न उपाय किये जा सकते हैं -

1. संयन्त्रों द्वारा निकलने वाले उच्च ताप वाले जल के फब्बारों को अधिक क्षेत्र में फैलने दिया जाये जब सामान्य ताप हो जाये तब उसे पुनः स्रोत में मिलाया जाये।

2. इससे निकलने वाली राख का प्रयोग ईंट बनाने में अधिक से अधिक किया जाना चाहिये।

3. समुद्र के भीतर भूमिगत परमाणु परीक्षणों पर सभी देशों में प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिये।

4. परमाणु संयन्त्रों से रिसाव न हो ऐसे उपाय किये जाने चाहिये।

5. कैंसर आदि के उपचार में प्रयुक्त होने वाले रेडियोधर्मी पदार्थों का उपयोग पूरी सावधानीपूर्वक सुरक्षित रूप से किया जाना चाहिये।

6. मानवता की रक्षा हेतु सभी देशों को मिलकर यू. एन. ओ. के माध्यम से युद्ध पर प्रतिबन्ध लगाने की बात होनी चाहिये।
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सम्पर्कः
वरिष्ठ प्रवक्ता: हिन्दी विभाग
दयानन्द वैदिक स्नातकोत्तर महाविद्यालय
उरई-जालौन (उ0प्र0)-285001

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