20 मई 2009

डॉ0 महेन्द्र भटनागर के काव्य-संग्रह राग-संवेदन की कविता - "अपेक्षा"

(7) अपेक्षा
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कोई तो हमें चाहे
गाहे-ब-गाहे!
.
निपट सूनी
अकेली ज़िन्दगी में,
गहरे कूप में बरबस
ढकेली ज़िन्दगी में,
निष्ठुर घात-वार-प्रहार
झेली ज़िन्दगी में,
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कोई तो हमें चाहे,
सराहे!
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किसी की तो मिले
शुभकामना
सद्भावना!
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अभिशाप झुलसे लोक में
सर्वत्र छाये शोक में
हमदर्द हो
कोई
कभी तो!
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तीव्र विद्युन्मय
दमित वातावरण में
बेतहाशा गूँजती जब
मर्मवेधी
चीख-आह-कराह,
अतिदाह में जलती
विध्वंसित ज़िन्दगी
आबद्व कारागाह!
.
ऐसे तबाही के क्षणों में
चाह जगती है कि
कोई तो हमें चाहे
भले,
गाहे-ब-गाहे!
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डा. महेंद्रभटनागर,
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