05 मई 2009

सीताराम गुप्ता का व्यंग्य - अथ श्वान पुराणम्

हमारी कालोनी में कई संभ्रांत परिवार रहते हैं। उनमें से अधिकांश के पास जैकी, रोशी अथवा टाइगर अवश्य होता है। वास्तव में जिन परिवारों में एक जैकी, रोकी अथवा टाइगर होता है वही संभ्रांत परिवारों की श्रेणी में आते हैं। संभ्रांतता का प्रतीक है जैकी अर्थात् एक अदद कुत्ता। ऐसे संभ्रांत परिवार या परिवार का कोई सदस्य या नौकर जब भी घर से बाहर कदम रखता है अपने प्रिय जैकी अथवा रोकी को साथ ले जाना नहीं भूलता। जिस प्रकार गाड़ी चलाने वाले के लिए मोटर ड्राइविंग लाइसेंस, कार्यालय में काम करने वाले के लिए आइडेंटिटी कार्ड अथवा परीक्षा में बैठने वाले के लिए रोल नंबर की जरूरत होती हैA एक संभ्रांत पुरुष अथवा महिला को अपनी सही पहचान बनाए रखने के लिए रोकी अथवा जैकी को साथ रखना अनिवार्य है।
सुबह दूध की लाइन में लगते समय जैकी की जंजीर हाथ में हो अथवा रोकी का साथ हो तो दूध की ख़रीदारी का मजा ही और है। लोगों पर आपका और आपके जैकी या टाइगर का इतना रौब पड़ता है कि आपको देखकर लोग काई की तरह हट जाते हैं और आप लाइन में जहाँ चाहें आराम से खड़े हो सकते हैं। इसमें आप दोनों के रौब के साथ-साथ कुत्ते के भय का प्रभाव ज्यादा काम करता है। दुकानदार भी प्रायः ऐसे संभ्रांत ग्राहकों को जल्दी निपटाने का प्रयास करते हैं क्योंकि दुकान के सामने पहुँचकर ही इनके श्वान महाशय को लघुशंका अथवा दीर्घशंका की हाजत होती है।
वैसे तो हमारे यहाँ लोग आपस में बहुत कम मिलते-जुलते हैं क्योंकि उपर वाला नीचे वाले को नहीं जानता तथा दाएँ वाला बाएँ वाले को नहीं पहचानता लेकिन वो लोग जिनके हाथों में अपने-अपने जैकियों की जंजीरें बंधी होती हैं घंटो सड़कों के किनारे खड़े अपने-अपने जैकियों की कुलीन नस्लों की विशेषताओं पर प्रकाश डालते रहते हैं। श्वानों की विभिन्न नस्लों और प्रजातियों के साथ-साथ बदलते मौसम में इनकी देखभाल और उपयुक्त आहार पर भी विशद चर्चा इन सेमिनारों में की जाती है। देश के नागरिकों को एक सूत्रा में बाँध्ने में सहायक है श्वान की ये विभिन्न प्रजातियाँ।
जितने खूबसूरत या ख़तरनाक कुत्ते उतने ही खूबसूरत या ख़तरनाक इनकी प्रजातियों और कुत्तों के नाम भी। कुछ नस्लों के नामों पर ग़ौर फरमाइये: ग्रेट डेन, डैश हाउण्ड, बेसेंट हाउण्ड, डाल्मेशियन, अल्सेशियन, सेंट बर्नार्ड, लेब्राडोर रेटरिवर, डाबरमैन, बुलमास्टिपफ, इंग्लिश कोकर स्पैनियल, जर्मन शेपर्ड, आयरिश वुल्पफ, प्रैंफच बुलडाग, बाक्सर, न्यू पफाउण्डलैंड, शिवावा, पिकनीस, बीगल्स, पि़फटमी, स्पिट्श, चोचो, लासा एप्सो, चीहुआहुआ तथा और न जाने कितनी प्रजातियाँ और नस्लें। ग्रेटडेन या बुलडाग नाम से भय लगता है। उपर से ‘टाइगर’ नाम रखकर रही-सही कसर भी पूरी कर दी। पामेरियन नस्ल की ख़ूबसूरत मादा का नाम रोशी रख दिया जाए तो नस्ल के साथ नाम में भी नशाकत और नप़फासत का अहसास होता है।
अब सिलेब्रिटीस और उनके डाग्स के बारे में भी थोड़ी चर्चा हो जाए। पिछले दिनों पैरिस हिल्टन सबसे ख़राब सिलेब्रिटी कुत्ता मालकिन चुनी गईं जबकि सबसे अच्छी सिलेब्रिटी कुत्ता मालकिन का खिताब मिला ब्रिटिश सिंगर शास स्टोन को। जर, जोरू और जमीन पर जंग छिड़ते तो देखा है पर पिछले दिनों ब्रिटनी स्पीअर और पेरिस हिल्टन के बीच अपने-अपने कुत्तों को लेकर जंग छिड़ गई। ब्रिटनी स्पीअर ने कहा कि उसके ‘बिट-बिट’, ‘लेसी-लू’ और ‘लकी’ नामक तीन चीहुआहुआ वुफत्ते पेरिस हिल्टन के टिंकरबैल से श्यादा क्यूट हैं। मुझे कुत्तों के बारे में इतनी अध्कि जानकारी होते हुए भी ये नहीं बता पाया कि टिंकरबैल कुत्ते का नाम है या प्रजाति।
एक बार एक ख़ूबसूरत बला के हाथ में एक पिल्ले की शंजीर देखकर मैंने कुत्तों सम्बन्धी अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने के लिए कहा, ‘‘आपका ‘पामेरियन’ तो बड़ा खूबसूरत है!’’ अपनी ख़ूबसूरती की ग़ाश गिराते हुए नाक-भौं सिकोड़कर उसने कहा, ‘‘पामेरियन! नो-नो, इट’श नोट पामेरियन बट अमेरिकन प्राइड’’ और मोनिका लेविंस्की की तरह अकड़ती हुई चली गई पर मेरी सिट्टी-पिटटी गुम हो गई। मुझे पता चल गया कि कुत्तों के मामले में मैं कितना अनाड़ी और अल्पज्ञानी हूँ। ‘अमेरिकन प्राइड’ प्रजाति का नाम सुन कर मुझे अमेरिका वेफ प्राइड अमेरिकी राष्ट्रपति बुश के कुत्ते ‘स्पाट’ की याद आ गई। कितना शहीन था ‘स्पाट’! व्हाइट हाउस की ओर से शारी एक विज्ञप्ति में बताया गया कि ‘स्पाट’ की असामयिक मृत्यु से पूरा बुश परिवार दुखी है। ‘स्पाट’ बुश सीनियर के कार्यकाल के दौरान व्हाइट हाउस में पैदा हुआ था। वह इंग्लिश स्प्रिंगर स्पाइनल प्रजाति का कुत्ता पंद्रह वर्ष का था। अब बुश के पास केवल दो पालतू कुत्ते रह गए हैं। उम्मीद है ‘स्पाट’ की कमी को पूरा करने के लिए कोई न कुत्ता अवश्य ही व्हाइट हाउस में जन्म लेगा अन्यथा व्हाइट हाउस के बाहर भी अच्छी प्रजाति के वफादार कुत्तों की कमी नहीं।
वे लोग जिनके यहाँ ‘जैकी’ या ‘रोशी’ नामक प्राणी मौजूद होता है बड़े प्रगतिशील विचारों के होते हैं। प्रेम-व्रेम के मामले में अपने बच्चों की चायस में दख़लंदाशी नहीं करते लेकिन क्या मजाल कि उनका ‘जैकी’ किसी देसी कुतिया की तरफ आँख उठाकर भी देख ले, उनकी ‘रोशी’ किसी लोकल कुत्ते के साथ मुँह काला करके घर में घुस आए। ख़ुद सारी सर्दियों खों-खों करते फरेंगे, लालइमली के मटमैले मफलर से टपकती नाक को रगड़-रगड़ कर बंदर-सी लाल कर लेंगे लेकिन डाक्टर के पास जाने का नाम नहीं लेंगे पर क्या मजाल कि अपने ‘जैकी’ या ‘रोशी’ को हिचकी भी आ जाए। छींक आना तो दूर की बात है। जरा सी सर्दी हुई नहीं कि जैकी का शाम के बाद घर से बाहर निकलना बंद। ‘जैकी’ या ‘रोशी’ को सीने से लगाए सारी रात रशाई में गुशार देंगे। जैकी या रोशी चाहे जितना भी कुनमुनाएँ उनकी पकड़ ढ़ीली नहीं होती। फ्रायड महोदय के अनुसार विपरीत लिंग के मानव और श्वान के बीच यह पकड़ अपेक्षाकृत अध्कि दृढ़ होती है। केसा अद्भुत प्रेम है मानव का श्वान के प्रति। काश! गलियों में घूमने वाले असंख्य आवारा कुत्तों के नसीब में भी ये सब होता।
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सीताराम गुप्ता
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