17 मई 2009

स्व0 आदर्श 'प्रहरी' जी की कविता - बदल गया सम्पूर्ण कथानक

ये पंक्तियाँ उरई (जालौन) के दयानंद वैदिक स्नातकोत्तर महाविद्यालय के राजनीति विज्ञान के रीडर डॉ० आदित्य कुमार द्वारा भेजी गईं हैं। इन्हें उनके बड़े भाई स्व० श्री आदर्श 'प्रहरी' जी ने सन 1977 में लिखा था। ये चंदपंक्तियाँ आज भी प्रासंगिक हैं।

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जाने क्या हो गया अचानक,
बदल गया सम्पूर्ण कथानक।
जो वैभव में पले-पुसे थे,
अब तो लगता जैसे याचक।
भाग्य बदलते उनके देखे,
जो कि कभी थे भाग्यविधायक।
बड़ा हो गया है शायद अब,
परिवर्तन का नन्हा बालक।

1 टिप्पणी:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

वाह!! क्या खूब रचना है.मन प्रसन्न हो गया.सेंगर जी, एक ब्लौग का पता दे रही हूं, साथ ही उस पर पधारने का आमंत्रण भी.
www.rrawasthi.blogspot.com