अखबार में एक विज्ञापन पर हमारी नजर पडी हम चौंके। बडा अजीब सा विज्ञापन था लिखा था
- ‘चुनाव के पहले और चुनाव के बाद’स्थाई ताकत और मजबूती के लिऐ मिले या लिखे ‘खानदानी हकीम तख्ता सिंह’ साथ में पूरा पता और फोन नम्बर भी दिये थे।विज्ञापन पढकर हमें लगा कि जरुर इन हकीम साहब से मिलना ही चाहिऐ। आखिर हकीम साहब का भला चुनाव में मजबूती और ताकत से क्या लेना देना ..?भला ऐसी कौनसी जडी बूटी हो सकती है जिससे चुनाव में ताकत आ जाऐगी।
हमसे अपने कदम नहीं रोके गये और पहुच गये हकीम साहब के शफाखाने पर
......।वहाँ हमने देखा कि कुछ नेता टाइप लोग लम्बा कुर्ता पहिने पहले से ही अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे।हमनें भी वहाँ बैठे एक श्रीमान जी को अपना नाम लिखाया और अपनी बारी के इंतजर में बैठ गये।
हमने देखा कि वहाँ पहले से मौजूद लोग एक
-एक करके अपनी बारी आने पर अंदर जाते और हकीम साहब के पास से हाथों में कुछ पुडिया का पैकेट लेकर प्रसन्न मुद्रा में सीना फुलाकर बाहर निकलते मानो कि चुनाव के सबसे बडे पहलवान वे ही हॊं और उनके सामने सभी चींटी के बराबर ही हैं।
हम इतमिनान से उनके चेहरों को पढ़ रहे थे। जब भी कोई व्यक्ति अन्दर जाता तो मुँह लटकाऐ
,ढ़ीला -ढ़ाला सा अनदर जाता था लेकिन बाहर निकलते समय अजीब सा आत्मवि्श्वास और चेहरे पर नई चमक लिऐ हुऐ ही बाहर निकल रहा था।ऐसा लगता था जैसे चुना आयोग से नियुक्ति पत्र ही मिल गया हो।
हमारी बारी आई तो हमने जैसे ही हकीम साहब के कक्ष में
प्रवेश किया तो सामने भैय्या जी को देख कर हम चौकें और न चाहते हुऐ भी मुँह से निकल ही गया-अरे भैय्या जी आप और यहाँ.....हकीम तख्ता सिंह..... आखिर माजरा क्या है.........? वे तुरन्त हमारे मुँह पर हा्थ रखते हुऐ बोले -धीरे बोलिऐ कोई सुन लेगा तो सब करा धरा चौपट हो जाऐगा.......!मैने उन्हें आश्वस्त किया कि अब बाहर कोई नहीं है मैं आजका आपका अन्तिम फौकट का ग्राहक हूँ।आखिर ये माजरा क्याहै.....? आप अचानक भैय्या जी से हकीम तख्ता सिंह कैसे बन गये......?नेताओं में ताकत और मजबूती की दवा का नुस्खा आखिर आपको कहाँ से मिल गया.....?
भैय्या जी बडे ही सहज भाव में बोले
-नुस्खा-वुस्खा कुछ नहीं है बस यूँ ही पापी पेट का सवाल है......
बस..।हम कुछ समझ नहीं पा रहे थे। हमने वहाँ रखे कुछ पारादर्शी डिब्बों की तरफ इशारा करते हुऐ उनसे पूछा- इन डब्बों में रंग बिरंगा पाउडर जो भरा है ,यह सब क्या है.....?वे सर खुजलाते हुऐ बोले - आप भी क्यों पीछे पडे हैं भला .....इनमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो लोगों के स्वास्थ पर बुरा असर दिखाऐ ।हकीकत तो ये है कि समाचार पत्रों में रोजाना आरहा था कि अमुक नेता कमजोर है .फलां उम्मीदवार कमजोर है ,प्रधान मन्त्री तक कमजोर माने जा रहें हैं इसलिऐ मैंने सोचा क्यों न ऐसी इजाद की जाऐ जिससे कोई भी इस चुनाव में अपने आपको कमजोर महसूस नहीं करे, बस ....।यही सोच कर कुछ दवा मैनें बनाई है। इन पारदर्शी डब्बों में भ्रष्टाचार, झूंठ, मक्कारी और बेहयाईपन का सत्व हमने इकट्ठा किया है जिसके सेवन से ईमानदार से ईमानदार नेता में भी नेतागिरी के वास्तविक गुण आजाते हैं। जिससे वह बिना शर्म्रोहया के चुनाव लड सकता है। चुनाव जीतने के बाद पता नहीं उसे शायद उन्हीं लोगों के साथ मिलकर सरकार में बैठना पड जाऐ जिनको आज वह जी खोल कर गालियां दे रहा है। आखिर ये लोग कुर्सी के लिऐ ही तो यह सब कर रहे हैं \यदि इनमें नैतिकता का अंश बाकी रह जायेगा तो फिर भला सरकार कैसे बनाऐगें।
भैय्या जी की बात भी सही है। तभी तो कल तक किसके किसीके साथ कैसे सम्बन्ध थे वे सब इतिहास की बाते हो गई है। और आज फिर एक नई समीकरण बन रही है। चुनाव के बाद की क्या समीकरण होगी वह तो चुनाव के बाद ही पता लगेगा कि कौन किसको गले लगाता है और कौन अपने चुनावी वादों पर कायम रह पाता है
....यह तो वक्त ही बतायेगा....?
--------------------------------
योगेन्द्र मणि कौशिक
- ‘चुनाव के पहले और चुनाव के बाद’स्थाई ताकत और मजबूती के लिऐ मिले या लिखे ‘खानदानी हकीम तख्ता सिंह’ साथ में पूरा पता और फोन नम्बर भी दिये थे।विज्ञापन पढकर हमें लगा कि जरुर इन हकीम साहब से मिलना ही चाहिऐ। आखिर हकीम साहब का भला चुनाव में मजबूती और ताकत से क्या लेना देना ..?भला ऐसी कौनसी जडी बूटी हो सकती है जिससे चुनाव में ताकत आ जाऐगी।
हमसे अपने कदम नहीं रोके गये और पहुच गये हकीम साहब के शफाखाने पर
......।वहाँ हमने देखा कि कुछ नेता टाइप लोग लम्बा कुर्ता पहिने पहले से ही अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे।हमनें भी वहाँ बैठे एक श्रीमान जी को अपना नाम लिखाया और अपनी बारी के इंतजर में बैठ गये।
हमने देखा कि वहाँ पहले से मौजूद लोग एक
-एक करके अपनी बारी आने पर अंदर जाते और हकीम साहब के पास से हाथों में कुछ पुडिया का पैकेट लेकर प्रसन्न मुद्रा में सीना फुलाकर बाहर निकलते मानो कि चुनाव के सबसे बडे पहलवान वे ही हॊं और उनके सामने सभी चींटी के बराबर ही हैं।
हम इतमिनान से उनके चेहरों को पढ़ रहे थे। जब भी कोई व्यक्ति अन्दर जाता तो मुँह लटकाऐ
,ढ़ीला -ढ़ाला सा अनदर जाता था लेकिन बाहर निकलते समय अजीब सा आत्मवि्श्वास और चेहरे पर नई चमक लिऐ हुऐ ही बाहर निकल रहा था।ऐसा लगता था जैसे चुना आयोग से नियुक्ति पत्र ही मिल गया हो।
हमारी बारी आई तो हमने जैसे ही हकीम साहब के कक्ष में
प्रवेश किया तो सामने भैय्या जी को देख कर हम चौकें और न चाहते हुऐ भी मुँह से निकल ही गया-अरे भैय्या जी आप और यहाँ.....हकीम तख्ता सिंह..... आखिर माजरा क्या है.........? वे तुरन्त हमारे मुँह पर हा्थ रखते हुऐ बोले -धीरे बोलिऐ कोई सुन लेगा तो सब करा धरा चौपट हो जाऐगा.......!मैने उन्हें आश्वस्त किया कि अब बाहर कोई नहीं है मैं आजका आपका अन्तिम फौकट का ग्राहक हूँ।आखिर ये माजरा क्याहै.....? आप अचानक भैय्या जी से हकीम तख्ता सिंह कैसे बन गये......?नेताओं में ताकत और मजबूती की दवा का नुस्खा आखिर आपको कहाँ से मिल गया.....?
भैय्या जी बडे ही सहज भाव में बोले
-नुस्खा-वुस्खा कुछ नहीं है बस यूँ ही पापी पेट का सवाल है......
बस..।हम कुछ समझ नहीं पा रहे थे। हमने वहाँ रखे कुछ पारादर्शी डिब्बों की तरफ इशारा करते हुऐ उनसे पूछा- इन डब्बों में रंग बिरंगा पाउडर जो भरा है ,यह सब क्या है.....?वे सर खुजलाते हुऐ बोले - आप भी क्यों पीछे पडे हैं भला .....इनमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो लोगों के स्वास्थ पर बुरा असर दिखाऐ ।हकीकत तो ये है कि समाचार पत्रों में रोजाना आरहा था कि अमुक नेता कमजोर है .फलां उम्मीदवार कमजोर है ,प्रधान मन्त्री तक कमजोर माने जा रहें हैं इसलिऐ मैंने सोचा क्यों न ऐसी इजाद की जाऐ जिससे कोई भी इस चुनाव में अपने आपको कमजोर महसूस नहीं करे, बस ....।यही सोच कर कुछ दवा मैनें बनाई है। इन पारदर्शी डब्बों में भ्रष्टाचार, झूंठ, मक्कारी और बेहयाईपन का सत्व हमने इकट्ठा किया है जिसके सेवन से ईमानदार से ईमानदार नेता में भी नेतागिरी के वास्तविक गुण आजाते हैं। जिससे वह बिना शर्म्रोहया के चुनाव लड सकता है। चुनाव जीतने के बाद पता नहीं उसे शायद उन्हीं लोगों के साथ मिलकर सरकार में बैठना पड जाऐ जिनको आज वह जी खोल कर गालियां दे रहा है। आखिर ये लोग कुर्सी के लिऐ ही तो यह सब कर रहे हैं \यदि इनमें नैतिकता का अंश बाकी रह जायेगा तो फिर भला सरकार कैसे बनाऐगें।
भैय्या जी की बात भी सही है। तभी तो कल तक किसके किसीके साथ कैसे सम्बन्ध थे वे सब इतिहास की बाते हो गई है। और आज फिर एक नई समीकरण बन रही है। चुनाव के बाद की क्या समीकरण होगी वह तो चुनाव के बाद ही पता लगेगा कि कौन किसको गले लगाता है और कौन अपने चुनावी वादों पर कायम रह पाता है
....यह तो वक्त ही बतायेगा....?
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योगेन्द्र मणि कौशिक
1 टिप्पणी:
इनमें नैतिकता का अंश बाकी रह जायेगा तो फिर भला सरकार कैसे बनाऐगें।
अच्छा व्यंग्य है
कुमारेंद्रजी
यदि आपको हमारी कोई रचना अच्छी लगे तो आप उसका उपयोग समुचित संदर्भ के साथ अपने कम्युनिटी ब्लॉग पर प्रदर्शित कर सकते हैं
सधन्यवाद
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